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सोमवार, 26 दिसंबर 2011

देख बुरे हालात !

आज़ादी के बाद भी, देश रहा कंगाल !
जेबें अपनी भर  गए, नेता और दलाल !!

क़र्ज़ गरीबों का घटा, कहे भला सरकार!
विधना के खाते रही, बाकि वही उधार!!

हर क्षेत्र में हम बढे, साधन है भरपूर !
फिर क्यों फंदे झूलते, बेचारे मजदूर !!


 लोकतंत्र अब रो रहा, देख बुरे हालात !
संसद में चलने लगे, थप्पड़-घुसे लात !!

देश बाँटने में लगी, नेताओं की फौज !
खाकर पैसा देश का, करते सारे मौज !!

फूंकेगी क्या-क्या भला, ये आतंकी आग !
लाखों  बेघर हो गए, लाखों मिटे सुहाग !!



गुरुवार, 22 दिसंबर 2011

करे फूल से प्यार !

जो महके है फूल-सा, करे फूल से प्यार !
पल-पल बढ़ता ही चले, आगे सभी प्रकार!!

यदि धरती ना बांटती, फूलों का उपहार !
तब प्रेमी कैसे भला, कर पाते इज़हार !!

 रखता मन में जो सदा, फूलों-सी मुस्कान !
उसके सारे काम  तब , हो जाते आसान !!


मंगलवार, 20 दिसंबर 2011

बचपन का वो गाँव !

यादों में आता रहा, बचपन का वो गाँव !
कच्चे घर का आँगना, और नीम की छाँव!!



बैठे-बैठे जब कहीं , आता बचपन याद!
मन चंचल करने लगे, परियों से संवाद !!


मुझको भाते आज भी , बचपन के वो गीत !
लोरी गाती मात की , अजब निराली प्रीत !!



आओ! मेरे साथियो, कर ले उनका ध्यान !
शान देश की जो बने, देकर अपनी जान !!

खूब यहाँ मुझको मिली, यारों की सौगात !
खिंचा सबने हाथ जब, आई दुःख की रात !!

मुझको जीवन से मिले, अलग-अलग अहसास !
कुछ खट्टे अंगूर से, कुछ में भरी मिठास !!

जीवन में सबको मिले, बस इतने उपहार !
महके-महके से रहे , रिश्ते खुशियाँ प्यार !!

भारत में है हर जगह , भाषा-भेष अनेक !
मिलजुल के सारे रहे , बनके सारे एक !!


सोमवार, 5 दिसंबर 2011

गीत हुए अनबोल !

अद्यापन मण्डी हुआ, शिक्षा हुई व्यापर !
छात्र लादे घूमते, पाठ्यक्रम का भार !!

घूम रहे है आजकल, गली-गली में चोर !
खड़ा मुसाफिर सोचता, जाये अब किस ओर !!

कब तक महकेगी भला, ऐसे सदा बहार !
माली ही जब लूटते, कलियों का संसार !!

स्याही,कलम,दावत से, सजने थे जो हाथ !
कूड़ा-करकट बीनते,  नाप रहे फूटपाथ !!

भाव-शून्य कविता हुई, गीत हुए अनबोल !
शब्द बीके  बाज़ार में, जब कौड़ी के मोल !! 

शनिवार, 3 दिसंबर 2011


हो जाता है खून !

मन से मन का मेल हो, पले  प्यार भरपूर !
मानवता के पथ खुले, भेद रहे सब दूर !!

अपने हित में साथियों , कर लो इतना ख्याल !
दो बच्चों से घर सदा, रहता है खुशहाल !!

अब तो आये रोज ही , टूट रहे परिवार !
फूट-कलह ने खींच दी , हर आँगन दीवार !!

अपराधी अब छूटते, तोड़े सभी विधान !
निर्दोषी हवालात में ,वाह! मेरे संविधान !!

पद-पैसे की आड़ में ,बिकने लगा विधान!
सरेआम अब घूमतें, अपराधी-शैतान !!

कैसी ख़बरें ला रहा , रोज-रोज अखबार !
हर पन्ने पे खून है , हर अक्षर दुराचार!!

जब पैसों के मोल में, बिकता है कानून !
खंजर बिना गरीब का , हो जाता है खून !!










शुक्रवार, 2 दिसंबर 2011

कोई गीत मल्हार !!

उषा उतरी पूरब से , कर सोलह श्रृंगार !
मानो दुल्हन लिए खड़ी, कोई हीरक हार !!

नदियाँ तट पे जब हवा, गए फाल्गुन राग !
भोरें आतुर हो उठे , पाने मस्त पराग !!

नयी सुबह का आगमन, लगे तीज -त्यौहार !
मिलजुल के गाये सभी, कोई गीत मल्हार !!



बस आडम्बर रूप है , पूजा-जप-तप ध्यान !
मन की आँखें देखती , कण -कण में भगवान!!

रोम -रोम में आप हो , आप रमें हर पोर !
आप मिले सब कुछ मिला , बाकि है क्या और !!

मानव को कैसे मिले , जीने का अधिकार !
बना रहे हर रोज हम , खतरनाक हथियार !!





गुरुवार, 1 दिसंबर 2011

बोलो मेरे राम

जिनके हाथों डोर दी , बेचा उनने देश !
भूख -गरीबी के सिवा , छोड़ा क्या है शेष !!

थाने इज्ज़त लूटतें, कोर्ट करे अन्याय !
बोलो मेरे राम अब, कहाँ मिलेगा न्याय !!



ऊँच-नीच के भेद सब, माती देत मिटाय!
माटी में मिलके सभी, एक रूप हो जाय !!

माटी चन्दन मानिये , माटी गुण की खान !
इस माटी में ही पले, राम-कृषण भगवान!!

बसंत ऋतू के साज़ पर , फूलों ने दी ताल !
सरसों नाची खेत में , थिरकी सारी डाल !!









बुधवार, 9 नवंबर 2011

कविता के छंद!!

कविता आनंददायिनी, लेती मन को जीत!
मानो कोयल गा रही, कोई मीठा गीत !!

कविता कंगन बोल है, पायल की झंकार  !
सच में दुल्हन-सी लगे, किये छंद श्रृंगार !

कविता है कामायनी, गीता का उपदेश ! !
जीवन को ये संवारती, बनकर हितोपदेश !!

हर कविता में है छुपी, कवि हृदय की पीर !
दुःख मीरा का है कहीं, रोता कहीं कबीर !!

उमड़े मन में जब कहीं, भावों का मकरंद !
चुपके चुपके फूटतें, तब  कविता के छंद !!

सजनी आकर बैठती, जब चुपके से पास !
कविताओं के बोल में, शब्द ढले अनायास !!

छंद दुखों का बन गया, जब ये जीवन गीत!
तब कविता बन के रही, मेरा सच्चा मीत !!

तब कविता कह डालती, मन की सारी बात !!
कह ना पाए बोल जब, दर्द भरें जज्बात !

सोमवार, 7 नवंबर 2011

मुझको तुम्हारा प्यार चाहिए !!

कर दे जो मन को तृप्त  
ऐसा एक उपहार चाहिए !
बुझ जाये मन की प्यास ,
मुझको तुम्हारा प्यार चाहिए !!

चाहे अब ये मन नहीं , झरने सा व्याकुल बहना !
चुभन काँटों की लिए , डूबा यादों में रहना !!

दर्द का जो स्वाद बदल दे 
मुझको वो अहसास चाहिए !
बुझ जाये मन की प्यास ,
मुझको तुम्हारा प्यार चाहिए !!

जब- जब तुझपे गीत लिखा ,  नाम तेरे मेरे  मीत लिखा !
 कैसे भूले तुझको साथी , हार को भी मैंने जीत लिखा !!

 पूछो कभी तो हाल मेरा,
अब ना मुझे इंतज़ार चाहिए !
बुझ जाये मन की प्यास ,
मुझको तुम्हारा प्यार चाहिए !!

 उजड़ा उजड़ा जीवन हैं , पीड़ा के छण पी रहा !
 आकर के तुम देख लो, कैसे हूँ मैं जी रहा !!

मन वासंती फिर हो जाये , 
मुझको वही फुहार चाहिए !!
बुझ जाये मन की प्यास ,
मुझको तुम्हारा प्यार चाहिए !!

रविवार, 6 नवंबर 2011

अब कौन बताये ??

चेहरे हैं सब क्यों मुरझाये , अब कौन बताये ?
क्यों फैलें दहशतगर्दी के साये , अब कौन बताये ??

कभी होकर कुर्बान जो देश पे अमर हुए थे ,
सपूत वही आज क्यों घबराये , अब कौन बताये ?

कौन हैं कातिल भारत माँ के सब अरमानों का ,
है हर चेहरा नकाब लगाये, अब कौन बताये ?

लिखूं क्या कहानी मैं वतन पे मिटने वालों की ,
वो तो मरकर भी मुस्कराए , अब कौन बताये ?

ये शब्दों की आजाद शमां यूं ही जलती जाएगी ,
बुझे ना दिल की आग बुझाह्ये, अब कौन बताये ?

इस माटी में जन्मा मैं एक रोज इसी में मिल जाऊँगा,
है अरमान काम देश के आये, अब कौन बताये ?

इबै न मारै मने

हाथ जोड़ कहूं अम्मा मेरी 
मैं हूँ बिन जन्मी नादान, इबै न मारै मने !

सै छह महीने का गर्भ तेरा 
ना छिनै माँ तू नसीब मेरा 
अम्मा मेरी मैं हूँ तेरी संतान !!


मैं भी तेरे आँगन खेलूंगी 
तेरे दुखरे मिलके झेलूंगी 
अम्मा मेरी बात मेरी तू मान !

मान मने भी धन तू अपना 
पूरा करूँ तेरा हर एक सपना 
अम्मा मेरी के तनै नुकसान!

बदल्या टेम सै लीक तोड़ तू 
अपनी बिटिया तै प्रीत जोड़ तू 
अम्मा मेरी मैं हूँ तेरी जान !!

हाथ जोड़ कहूं अम्मा मेरी 
मैं हूँ बिन जन्मी नादान, इबै न मारै मने !

सोमवार, 24 अक्टूबर 2011

माँ वीणा की झंकार भर दो !

माँ वीणा वादिनी, मधुर स्वर दो !
हर  जिह्वा वैभवयुक्त कर  दो !!
मन  सारे स्नेहमय हो जाये,
जीवन में वो अमृत भर दो!!

माँ वीणा की झंकार भर दो !
दिल में नवल संचार कर दो !!
हर डाली खूश्बूमय हो जाये ,
ऐसे सब गुलज़ार कर दो !!

अंतस तम को दूर कर दो !
अंधियारे को नूर कर दो !!
मन से मन का हो मिलन,
भेद सारे चूर कर दो !!

गान कर माँ रागिनी का !
भान कर माँ वादिनी का !!
पूरी हो माँ सब कामनाएं,
दो सुर माँ रागिनी का !!
                   __डॉक्टर सत्यवान  वर्मा सौरभ

शनिवार, 22 अक्टूबर 2011

सब के पास उजाले हो !!


मानवता का सन्देश फैलाते, मस्जिद और शिवाले हो !
नीर प्रेम का भरा हो सब में, ऐसे सबके प्याले हो !!
 होली जैसे रंग हो बिखरे, दीपों की बारात सजी हो ,
अंधियारे का नाम न हो, सब के पास उजाले हो !!

हो श्रृद्धा और विश्वास सभी में, नैतिक मूल्य पाले हो !
संस्कृति का करे सब पूजन, संस्कारों के रखवाले हो !!
चौराहों पे न लुटे अस्मत , दुशासन ना बढ़ पाएं ,
भूख, गरीबी, आंतक  मिटे, ना देश में धंधे काले हो !

सच्चाई को मिले आजादी और लगे झूठ पर तालें हो !
तन को कपडा सिर को साया, सब के पास निवाले हो !!
दर्द किसी को छू ना पाये, ना किसी आँख से आंसूं आये,
झोंपड़ियों के आँगन में भी खुशियों  की फैली डालें हो !!

जिए और जीने दे ना चलते कहीं बरछी भाले हो !
हर दिल में हो भाईचारा, नाग ना पलते काले हो !!
नगमो- सा हो जाये जीवन, फूलों भरा हो हर आँगन ,
सुख ही सुख मिले सभी को, एक दूजे को सम्हाले हो !!!












रविवार, 16 अक्टूबर 2011

कविता-सौरभ: टूट गए अनुबंध

कविता-सौरभ: टूट गए अनुबंध: मन रहता व्याकुल सदा, पाने माँ का प्यार ! लिखी मात की पतियाँ, बांचूं बार हज़ार !! अंतर्मन गोकुल हुआ, जाना जिसने प्यार ! मोहन हृदय में बसे, रह...

टूट गए अनुबंध

मन रहता व्याकुल सदा, पाने माँ का प्यार !
लिखी मात की पतियाँ, बांचूं बार हज़ार !!

अंतर्मन गोकुल हुआ, जाना जिसने प्यार !
मोहन हृदय में बसे, रहते नहीं विकार !!

बना दिखावा प्यार अब, लेती हवास उफान !
राधा के तन पे लगा, अब मोहन का ध्यान !!

बस पैसों के दोस्त हैं, बस पैसों से प्यार !
बैठ सुदामा सोचता,मिले कहाँ अब यार !!

दुखी गरीबों पे सदा, जो बाँटें हैं प्यार !
सपने उसके सब सदा, होते हैं साकार !!

आपस में जब प्यार हो , फलें खूब व्यवहार !
रिश्तों की दीवार में, पड़ती नहीं दरार !! 

नवभोर में  फूलें  फलें , मन में निश्चल प्यार !
आँगन-आँगन फूल हो , महकें बसंत बहार !!

रखें हृदय में प्यार जो, बांटें हृदय में प्यार !
उसके घर आँगन सदा, आये दिन त्यौहार !!

जहाँ महकता प्यार हो, धन न बने दीवार !
वहां कभी होती नहीं, आपस में तकरार !!

प्यार वासनामय हुआ, टूट गए अनुबंध !
बिखरे-बिखरे से लगे, अब मीरा के छंद !!

शनिवार, 15 अक्टूबर 2011


यादों का गुलज़ार !!

मैं प्यासा राही रहा, तुम हो बहती धार!
भर-भर अंजुली बाँट दो,मुझको कविते प्यार !!

जब तुमने यूं प्यार से ,देखा मेरे मीत !
थिरकन पांवो में सजी,होंठो पे संगीत!!

महक रहा हैं आज भी, तेरा-मेरा प्यार !
यादों के संसार में , बनकर के गुलजार !!

चलते-चलते जब कहीं, तुम आते हो याद !
आँखों से होने लगे, आंसूं की बरसात !!

वक्त हुआ ज्यों धुंधला, भूले सारी बात !
पर भुला ना हम सके, साथी तेरा साथ !!

ख़त वो पहले प्यार का, देखू जितनी बार !
महका-महका-सा लगे, यादों का गुलज़ार !!

पंछी बन के उड़ चले, मेरे सब अरमान !
देख बिखेरी प्यार से, जब तुमने मुस्कान !!

छुप-छुप नैना जब लगे, करने आपस बात !
बिन कहे हम कह गए,दिल के सब जज्बात !!

लौटा तेरे शहर में, जब मैं बरसों बाद !
आंसूं बन होने लगी, यादों की बरसात !!






तुम साथी दिल में रहे, जीवन भर आबाद !
क्या तुमने भी किया, किसी वक्त हमें याद !!

आँखों में बस तुम बसे, दिन हो चाहे रात !
साथी तेरे बिन लगे, सूनी हर सौगात !!

लिखके ख़त से भेजिए, साथी सारा हाल !
ख़त पाए अब आपका, बीतें काफी साल !!

खुदा मानकर आपको, सजदे किये हज़ार !
फिर क्यों छोड़ चले, यूं बीच  मंझधार !!

मन दर्पण में देख लूं , जब तेरी  तस्वीर !
आंसूं बन के बह चले, मेरे मन की पीर !!

बिछुड़े साथी तुम कहाँ, लौटों मेरे पास !
कब से तुमको खोजते, नैन मेरे उदास !!

मंगलवार, 27 सितंबर 2011

फूलों का अहसास !

कांटें साथी जानिए , होते कांटें नेक !
रहके काँटों बीच ही , खिलते फूल अनेक !!

बीते कल को भूल के, चुग डाले सब शूल!
बोये हम नवभोर पे, सुंदर-सुरभित फूल !!

पायेगा तू भी कभी, फूलों की सौगात !
धुन अपनी मत छोड़ना, सुधरेंगें हालात!!

आओ  काँटों में भरें , फूलों का अहसास !
महके -महके से रहे , धरती औ" आकाश !!

उठो चलो आगे बढ़ो, भूलो दुःख की बात !
आशाओं के रंग में , रंग लो फीर जज्बात !!

नए दौर में हम करे , ऐसा एक नव प्रयास !
शब्द जो ये कलम लिखे , बन जाये इतिहास !!


शुक्रवार, 9 सितंबर 2011

अब कैसे गीत गाऊँ मैं !!

बिखेर चली तुम साज मेरा !
अब कैसे गीत गाऊँ मैं !!
तुमने ही जो ठुकरा दिया 
अब किस से प्रीत लगाऊं मैं !!

सूना -सूना सब तुम बिन 
रात अँधेरी फीके दिन !
तुम पे जो मैंने गीत लिखे 
किसको आज सुनाऊँ मैं!!

बिखरी - बिखरी सब आशाएं 
घेरे मुझको घोर निराशाएं !
नौका जो छूट गई हैं मुझसे 
अब कैसे साहिल पाऊँ मैं!!

रूठे स्वर ,रूठी मन -वीणा 
मुश्किल हुआ तन्हा जीना !
कहो कविते! अब तुम बिन
कैसे आज गुनगुनाऊँ मैं!!

सताती हर पल तेरी यादें 
बीता मौसम , बीता बातें !
टूटी कसमें ,टूटे सब वादें 
किस पे आज मर जाऊं मैं!!

शिक्षक

वह बुझे हुए दीप भी जला सकता हैं,
अज्ञान को दूर शिक्षक भगा सकता हैं!
अपने ज्ञान के जादू से वह-
इस धरती को स्वर्ग बना सकता हैं!!

शिक्षकों की कथनी में बड़ी शक्ति हैं,
धार ज्यों तलवार की ताकत रखती हैं!
लौ इनके ज्ञान की जब हैं फैलती तो 
देश का इतिहास बदल सकती हैं!!

अ ! देश के शिक्षकों आँखें खोलों ,
कर्तव्य की तुला पे स्वयं को तोलो !
अर्जुन से शिष्य जो करते   थे पैदा]
 आज वो गुरु द्रोण कहाँ हैं बोलो !!

यह देश कभी अनपढ़, मजबूर न बने,
विज्ञानं से ज्ञान से भरपूर बने !
इच्छा हैं मेरे ज्ञान का कण-कण
सरस्वती की मांग का सिन्दूर बने!!


सोमवार, 22 अगस्त 2011

कविता-सौरभ: बांटो हिंदी ज्ञान

कविता-सौरभ: बांटो हिंदी ज्ञान: हिंदी भाषा हैं रही , समता की पहचान !! हिंदी ने पैदा किये , तुलसी औ' रसखान !! हिंदी हो हर बोल में , हिंदी पे हो नाज़ ! हिंदी मेंहोने लगे ,...

बांटो हिंदी ज्ञान

हिंदी भाषा हैं रही , समता की पहचान !!
हिंदी ने पैदा किये , तुलसी औ' रसखान !!

हिंदी हो हर बोल में , हिंदी पे हो नाज़ !  
हिंदी मेंहोने लगे ,शासन के सब काज !!

दिल से चाहो तुम , अगर भारत का उत्थान !
परभाषा को त्याग के, बांटो हिंदी ज्ञान !!

हिंदी भाषा हैं रही, जन~जन की आवाज़!
फिर क्यों आंसू रो रही;राष्ट्रभाषा आज !!

हिंदी जैसी हैं नहीं , भाषा रे आसान !
परभाषा से चिपकता,फिर क्यों तू नादान !!

शनिवार, 20 अगस्त 2011

बन जाये इतिहास !

उठो चलो आगे बढ़ो , भूलो दुःख की बात !
आशाओं के रंग में , रंग लो फिर जज्बात !!

नए दौर में हम करें , ऐसा नव प्रयास !
शब्द जो ये कलम लिखे , बन जाये इतिहास !!

बने विजेता वो सदा , ऐसा मुझे यकीन !
आँखों में आकाश हो , पांवो तले जमीन !!

साथी कभी न छोड़ना , नयी भोर की आस !
अंधकार को चीर के, आता सदा प्रकाश !!




फूलों का अहसास !

काँटों को अपनाइए , होते कांटें नेक !
रहके  काँटों बीच ही , खिलते फूल अनेक !!

आओ मिलके सब बढे , नए सत्र की ओर! 
बार~बार पुकार रही , नयी सुहानी भोर !!

बीते कल को भूल के ,चुग डाले सब शूल !
बोये हम नवभोर पे ,सुंदर सुरभित फूल!!

तू भी पायेगा कभी , फूलों की सौगात !
धुन अपनी मत छोड़ना , सुधरेंगे हालात!!

आओ काँटों में भरे , फूलों का अहसास !
ताकि चन्दन से महके , धरती और आकाश !!

शुक्रवार, 4 मार्च 2011

सत्यवान वर्मा सौरभ की लघुकथाएँ


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एडजस्टमेंट



मोहन के पास एक भैंस थी जिसका नाम मांडी था। सारे परिवार के लोग इसी का दूध पीते थे। दूध भी तो ढ़ेर सारा देती थी । घर के सदस्यों के साथ-साथ घर के कुत्ते-बिल्लियां भी उसका दूध पीकर निहाल हो जाते थे। पशुपालन विभाग द्वारा लगाई जाने वाली नुमाईशों में मांडी ने अनेकों ईनाम जीते थे। दूध प्रतियोगिता में प्रथम आने पर सरकार द्वारा मांडी का चालीस हजार का बीमा किया गया। मोहन और उसकी पत्नी मांडी को अपने बच्चों से भी ज्यादा प्यार करते थे।
मांडी भी बड़ी खुश रहती थी। उसने दो कटड़ियों को जन्म दिया। वे भी बड़ी हुई। घर में दूध की गंगा बहने लगी। समय बीता मांडी बूढ़ी हो गई थी, शरीर जवाब देने लगा, कई समस्याएं हो गई थी। एक दिन अचानक उसके पेट में जोर का दर्द उठा। अलसर फ ट गया था, हालत नाजुक थी । अस्पताल ले जाया गया। वहां उसका तत्काल ही आप्रेशन करना पड़ा। सर्जन साहब ने जवाब दिया बचनी मुश्किल है, हो सकता है कभी दिन निकाल दे। पर सर्जन साहब, ये मर गई तो मेरा सारा धंधा चौपट हो जायेगा। वैसे भी मुझे आजकल पैसों की बहुत जरूरत है। मोहन ने गिड़गिड़ाते हुए सर्जन बाबू से कहा।
कोई बात नहीं मोहन मांडी का बीमा है ना, वो भी चालीस हजार का। वो तुम्हें मिल जाऐंगे। सर्जन साहब ने मोहन को समझाते हुए कहा। पर साहब बीमे के दो दिन बचे है उसके बाद पैसे थोड़े ही मिलेगें । मैं तो उजड़ जाऊंगा, साहब । मोहन ने दर्द भरे लहजे में कहा। सर्जन साहब ने कंपाउडर से जहर का इंजैक् शन मांगते हुए कहा ये इतनी बड़ी समस्या नहीं है मोहन, हम एडजस्टमेंट कर लेंगे। और बेचारी मांडी क्भ् दिन पहले ही धरती से अलविदा हो गई।




नई परम्परा

विजय के पिता जी का स्वर्गवास हो गया था। उनके खानदान में परपरा थी कि स्वर्गवासी के फ ूलों (अस्थियों ) को गंगा जी में विसर्जित किया जाता था। वह अपने पिता की आत्मिक शांति के लिए हरिद्वार चल पड़ा। जैसे ही उसने हरिद्वार की भूमि पर कदम रखे उसके चारों ओर पण्डों की भीड़ जुट गई। हाँ, जी कौन-सी जाति के हो । कहाँ से आए हो ? किसके यहाँ जाओगे ? जैसे-जैसे प्रश्नों की संख्या बढ़ रही थी उसकी दुगुनी गति से पण्डों का हुजूम उमड़ रहा था। पिता की मौत के भार तले दबे विजय ने धीरे से बोलते हुए कहा, मुझे पण्डित गुमानी राम के यहाँ जाना है। उसके बड़े-बुजुर्ग कहा करते थे कि गुमानी राम जी उनके खानदानी पण्डित है।
इतने में भीड़ से एक पण्डे की आवाज आई- आइए मेरे साथ आइए, मैं उनका पौत्र हूँ। में ले चलता हूँ आपको गंगा घाट। आया हुआ पण्डा विजय के हाथों से अस्थि कलश लेकर उनके आगे-आगे चल पड़ा और वो उनके पीछे-पीछे। रास्ते में बतियाते हुए पण्डा बोला- एक हजार रूपये दान करना जी अस्थियां विसर्जित करने के लिए ताकि दिवंगत आत्मा को शांति मिल सके। ऐसी बात सुनकर विजय चौंका तो जरूर पर बिना कुछ कहे उसके साथ-साथ चलता रहा। पण्डे ने फिर से कहा, कहो जी दान करोगे ना। विजय ने उदासी पूर्ण भाव से कहा नहीं, मेरे पास इतने पैसे नहीं है। चलो कोई बात नहीं पिता की सद्गति के लिए कुछ तो दान करना
ही पड़ेगा आपको । कुछ कम कर देंगे, पांच सौ रूपये तो होंगे आपके पास। विजय चुपचाप पण्डे की बात सुनता रहा। लगता है पिता पे तुम्हारी श्रद्धा बिल्कुल नहीं है। तुम्हारा कुछ तो कर्त्तव्य बनता है उनके लिए । जो कुछ था तुम्हारे लिए ही तो छोड़ गए बेचारे । अगर उसमें से थोड़ा हमें दान कर दोगे तो क्या जाता है तुहारा? विजय अब भी चुपचाप सुनते जा रहा था।
गंगा घाट बस बीस कदमों की दूरी पे था। पण्डा अपना आपा खो बैठा था ।बड़े निकम्मे पुत्र हो । मरे बाप की कमाई अकेले खाना चाहते हो। पण्डे की बेतुकी बातें सुनते-सुनते विजय का संयम टूट चुका था। उसने पण्डे के हाथों से अपने पिता का अस्थि-कलश छीन लिया था और पण्डे की ओर देखते हुए बोला- पिता जी मेरे थे। आप कौन होते है उसकी कमाई का हिस्सा मांगने वाले । मेरी श्रद्धा से मैं यहाँ आया हूँ और दान भी अपनी श्रद्धा से ही देता। पर अब तुम्हारी बातें सुनकर तो वो भी नहीं करूंगा और न ही आगे आने वाली पीढ़ियों को करने दूँगा। यह कहकर वह गंगा में उतर गया ।
मैया के जयकारे के संग एक नई परपरा बनाते हुए उसने पिता के फू ल गंगा माँ की गोद में अर्पित कर दिये थे। वहीं दूसरी ओर किनारे खड़ा पण्डा इस नई परपरा से अपना धन्धा चौपट होते देख रहा था।
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लड़की

नहीं जी इस सांवली लड़की से मेरे बेटे की शादी थोड़ी ही होने दूँगी। चाँद जैसी बहू चाहिए मेरे बेटे को तो चलो जी दुनिया में लड़कियों की कोई कमी नहीं है ,कोई और खूबसूरत लड़की देखेंगे। अपने लड़के लिए रिश्ता देखने आई कामिनी ने रीना को नकारते हुए अपने पति से कहा। पर कामिनी रीना के गुणों को देखो । वह अच्छे अंकों से स्नातक पास है , घर के सारे कार्यों में निपुण है रीना । हाँ जी सुन लिया आप चलते हैं कि नहीं मैं तो ता रही हूँ ऐसी सांवजी ले जाकर मेरी तो मोहल्ले में नाक कट जाएगी। आखिर महता जी को कामिनी की जिद्द के आगे झुकना पड़े और वो वहां से लौट आए।
कुछ दिनों बाद कामिनी ने अपनी पंसद की लड़की से अपने बेटे की शादी करवा दी। उनकी छोटी बेटी दिव्या भी अब शादी के लायक हो गई थी। आज दिव्या को लड़के वाले देखने आ रहे हैं। घर में तैयारियां चल रही है मगर बेटे और चाँद-सी बहू का अभी तक पता नहीं कि वो आऐंगे या नहीं। खैर लड़के वाले जरूर पहुँचे । उन्होंने दिव्या को देखा मगर शादी के लिए राजी नहीं हुए। वैसे तो दिव्या के चरित्र में कोई दोष नहीं, अच्छी पढ़ी-लिखी भी है। पर एक ही कारण लड़के वालों ने बताया कि उसका रंग थोड़ा सांवला है इसलिए वो दिव्या का रिश्ता नहीं ले रहे। लड़के वालों का जवाब सुनकर कामिनी का व्यक्त्वि उससे जवाब मांगने लगा था पर शायद उसके पास निरूत्तर रहने के अलावा कोई चारा भी नहीं था।

फैसला

बेटे! जरा, देखो तो सही तुम्हारा परिणाम कैसा रहा। मैंने सुना है कि आज के अखबार में एचसीएस का परिणाम आया है। महेन्द्र के पिताजी ने उससे उत्सुकता पूर्वक पूछा।
हाँ, पिताजी आज परिणाम आया है, मेरा चयन नहीं हुआ । शायद मेरी किस्मत ही खराब है तभी तो हर साल साक्षात्कार में असफल हो जाता हूँ। महेन्द्र ने मायूस होते हुए जवाब दिया।
बेटे हर इन्सान को अपने कर्मों का फ ल अवश्य मिलता है, इसमें मायूस होने की जरूरत नहीं है। अगले साल तुहारा चयन जरूर हो जायेगा, मुझे पूरा भरोसा है। महेन्द्र के पिता ने उसका ढ़ांढ़स बंधाते हुए कहा।
नहीं, पिताजी अब मेरा इन बातों से विश्वास उठ गया है। पड़ोस के गाँव के रोशनलाल को देखो। उसका तो पहली बार में ही चयन हो गया। उसके अंक भी मेरे से कम थे। आस-पास के लोगों से सुना तो पता चला कि उसके पिता की बड़े-बड़े राजनेताओं से जान-पहचान है। इसी का फ फायदा उठाते हुए उन्होंने पचास लाख रूपये देकर रोशन का चयन पहले से ही पक्का करवा लिया । अब तुम्हीं बताओ पिताजी क्या फायदा है रात-रात भर जागकर पढ़ाई करने का।
मैंने तो अब फैसला कर लिया है कि कोई ठीक-सी पार्टी राजनितिक देखकर उसमें शामिल हो जाऊं । यह कहते हुए महेन्द्र ने अपनी किताबें एक ओर फैंक दी।
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-डा0 सत्यवान वर्मा ‘सौरभ’,
कविता निकेतन,बड़वा
(भिवानी) हरियाणा

सोमवार, 10 जनवरी 2011

Dr.satywan saurabh barwa: छंद दोहा

Dr.satywan saurabh barwa: छंद दोहा: "पाँवों तले ज़मीनप्रकाशन :शुक्रवार, 7 जनवरी 2011 डॉ. सत्यवान वर्मा सौरभ कांटों को अ..."

छंद दोहा

पाँवों तले ज़मीन

प्रकाशन :शुक्रवार, 7 जनवरी 2011
डॉ. सत्यवान वर्मा सौरभ
कांटों को अपनाइए होते कांटे नेक।
रहके कांटों बीच ही खिलते फूल अनेक।

आओ मिलकर सब बढ़े नए सत्र की ओर।
बार बार पुकार रही नयी सुहानी भोर।

बीते कल को भूल के चुग डाले सब फूल।
बोये हम नव भोर पे सुंदर सुरभित फूल।

तू भी पाएगा कभी फूलों की सौगात।
धुन अपनी मत छोडऩा सुधरेंगे हालात।

आओ कांटों में भरे फूलों का अहसास।
ताकि चंदन से महके धरती औ’ आकाश।

उठो चलो आगे बढ़ो भूलों दुख की बात।
आशाओं के रंग में रंग लो फिर जज्बात।

नये दौर में हम करे एक नया प्रयास।
शब्द जो ये क़लम लिखे बन जाए इतिहास।

बने विजेता वो सदा ऐसा मुझे यक़ीन।
आँखों आकाश हो पाँवों तले ज़मीन।

साथी कभी न छोडऩा नयी भोर की आस।
अंधकार को चीर के, आएगा प्रकाश।              
 डॉ. सत्यवान वर्मा सौरभ