अद्यापन मण्डी हुआ, शिक्षा हुई व्यापर !
छात्र लादे घूमते, पाठ्यक्रम का भार !!
घूम रहे है आजकल, गली-गली में चोर !
खड़ा मुसाफिर सोचता, जाये अब किस ओर !!
कब तक महकेगी भला, ऐसे सदा बहार !
माली ही जब लूटते, कलियों का संसार !!
स्याही,कलम,दावत से, सजने थे जो हाथ !
कूड़ा-करकट बीनते, नाप रहे फूटपाथ !!
भाव-शून्य कविता हुई, गीत हुए अनबोल !
शब्द बीके बाज़ार में, जब कौड़ी के मोल !!
छात्र लादे घूमते, पाठ्यक्रम का भार !!
घूम रहे है आजकल, गली-गली में चोर !
खड़ा मुसाफिर सोचता, जाये अब किस ओर !!
कब तक महकेगी भला, ऐसे सदा बहार !
माली ही जब लूटते, कलियों का संसार !!
स्याही,कलम,दावत से, सजने थे जो हाथ !
कूड़ा-करकट बीनते, नाप रहे फूटपाथ !!
भाव-शून्य कविता हुई, गीत हुए अनबोल !
शब्द बीके बाज़ार में, जब कौड़ी के मोल !!
बहुत सुंदर कविता ...समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
जवाब देंहटाएं