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बुधवार, 24 नवंबर 2010

Dr.satywan saurabh barwa: DOHO ke Rang Saurabh ke Sung

Dr.satywan saurabh barwa: DOHO ke Rang Saurabh ke Sung: "1 हिन्दी माँ का रूप है, समता की पहचान। हिन्दी ने पैदा किए, तुलसी औ’ रसखान।। 2 हिन्दी हो हर बोल में, हिन्दी पे हो नाज। हिन्दी में होने..."

Dr.satywan saurabh barwa: DOHO ke Rang Saurabh ke Sung

Dr.satywan saurabh barwa: DOHO ke Rang Saurabh ke Sung: "1 हिन्दी माँ का रूप है, समता की पहचान। हिन्दी ने पैदा किए, तुलसी औ’ रसखान।। 2 हिन्दी हो हर बोल में, हिन्दी पे हो नाज। हिन्दी में होने..."

DOHO ke Rang Saurabh ke Sung

1 हिन्दी माँ का रूप है, समता की पहचान।
   हिन्दी ने पैदा किए, तुलसी औ’ रसखान।।

2 हिन्दी हो हर बोल में, हिन्दी पे हो नाज।
   हिन्दी में होने लगे, शासन के सब काज।।

3 दिल से चाहो तुम अगर, भारत का उत्थान।
   परभाषा को त्याग के, बांटो हिन्दी ज्ञान।।

4 हिन्दी भाषा है रही, जन-जन की आवाज।
   फिर क्यों आंसू रो रही, राष्ट्रभाषा आज।।

5 हिन्दी जैसी है नहीं, भाषा रे आसान।
   पराभाषा से चिपकता, फिर क्यूं रे नादान।।

6 बिन भाषा के देश का,  होय नहीं उत्थान।
   बात पते की ये रही,  समझो तनिक सुजान।।

7 मिलके सारे आज सभी, मन से लो ये ठान।
   हिन्दी भाषा का कभी, घट ना पाए मान।।

8 जिनकी भाषा है नहीं, उनका रूके विकास।
   पराभाषा से होत है, यथाशीघ्र विनाश ।।

9 मन रहता व्याकुल सदा, पाने माँ का प्यार।
   लिखी मात की पातियां, बांचू बार हजार।।

10 अंतर्मन गोकुल हुआ,  जाना जिसने प्यार।
    मोहन हृदय में बसे,  रहते नहीं विकार।।

11 बना दिखावा प्यार अब,  लेती हवस उफान।
    राधा के तन पे लगा,  है मोहन का ध्यान।।

12 बस पैसों के दोस्त है,  बस पैसों से प्यार।
   बैठ सुदामा सोचता,  मिले कहां अब यार।।

13 दुखी-गरीबों पे सदा, जो बांटे हैं प्यार।
    सपने उसके सब सदा,  होते हैx साकार।।

14 आपस में जब प्यार हो,  फले खूब व्यवहार।
    रिश्तों की दीवार में,  पड़ती नहीं दरार।।

15 नवभोर में फले-फूले,  मन में निश्छल प्यार।
    आंगन आंगन फूल हो,  महके बसंत बहार।।

16 रो हृदय में प्यार जो, बांटे हरदम प्यार।
   उसके घर आंगन सदा,  आए दिन त्योहार।।

17 जहां महकता प्यार हो, धन न बने दीवार।
    वहा कभी होती नहीं,  आपस में तकरार।।

18 प्रेम वासनामय हुआ,  टूट गए अनुबंध।
    बिारे-बिखरे से लगे, अब मीरा के छंद।।

19 राखी प्रतीक प्रेम की,  राखी है विश्वास।
   जीवनभर है महकती, बनके फूल सुवास।।

20 राखी के धागे बसी, मीठी-मीठी प्रीत।
    दुलार प्यारी बहन का, जैसे महका गीत।।

                     - डा0 सत्यवान वर्मा सौरभ
                        कविता निकेतन,  बड़वा भिवानी हरियाणा-127045 e-mail:kavitaniketan333@gmail.com

शुक्रवार, 19 नवंबर 2010

रचनाकार: सत्यवान वर्मा सौरभ की कविताएँ - बिखेर चली तुम साज मेरा अब कैसे गीत गाऊं मैं

रचनाकार: सत्यवान वर्मा सौरभ की कविताएँ - बिखेर चली तुम साज मेरा अब कैसे गीत गाऊं मैं

रचनाकार: सत्यवान वर्मा सौरभ की कविताएँ - बिखेर चली तुम साज मेरा अब कैसे गीत गाऊं मैं

रचनाकार: सत्यवान वर्मा सौरभ की कविताएँ - बिखेर चली तुम साज मेरा अब कैसे गीत गाऊं मैं

Dr.satywan saurabh barwa:  माँ    -Dr. satywan saurabh माँ ममता की खान हैं...

Dr.satywan saurabh barwa: माँ -Dr. satywan saurabh

माँ ममता की खान हैं...
: " माँ -Dr. satywan saurabh माँ ममता की खान हैं! माँ दूजा भगवान् हैं !! माँ की महिमा अपरम्पार , माँ श्रेष्ठ और महान हैं !!! ..."

Dr.satywan saurabh barwa:  माँ    -Dr. satywan saurabh माँ ममता की खान हैं...

Dr.satywan saurabh barwa: माँ -Dr. satywan saurabh

माँ ममता की खान हैं...
: " माँ -Dr. satywan saurabh माँ ममता की खान हैं! माँ दूजा भगवान् हैं !! माँ की महिमा अपरम्पार , माँ श्रेष्ठ और महान हैं !!! ..."
 माँ    -Dr. satywan saurabh

माँ ममता की खान हैं!
माँ दूजा भगवान्  हैं !!
माँ की महिमा अपरम्पार ,
माँ श्रेष्ठ और महान  हैं !!!
                           
                              माँ कविता ,माँ हैं कहानी !
                              माँ हैं गीता की जुबानी !!
                              माँ तो सिर्फ माँ ही हैं ,
                              न हिन्दुस्तानी ,न पाकिस्तानी !!!
 माँ हैं फूलों की बहार !
माँ सरस सुरीली सितार !!
माँ ताल हैं ;माँ लय हैं ,
माँ हैं जीवन की झंकार  !!
                                          माँ वेद हैं ,माँ ही गीता !
                                          माँ बिन ये  jug rita   !!
                                          माँ kali माँ saraswati ,
                                         माँ kaushlya माँ sita !!

                                             -Dr. satywan  saurabh  ,333 कविता niketan, badwa bhiwani hariyana-127045

Dr.satywan saurabh barwa:  किस से प्रीत लगाऊं मैं  -डॉ. सत्यवान वर्मा सौरभ ...

Dr.satywan saurabh barwa: किस से प्रीत लगाऊं मैं -डॉ. सत्यवान वर्मा सौरभ
...
: " किस से प्रीत लगाऊं मैं -डॉ. सत्यवान वर्मा सौरभ बिखेर चली तुम साज मेरा, अब कैसे गीत गाऊँ मैं! तुमने ही जो ठुकरा दिया, अब किस से प्रीत लग..."

गुरुवार, 18 नवंबर 2010

 किस से प्रीत लगाऊं मैं  -डॉ. सत्यवान वर्मा सौरभ

बिखेर चली तुम साज मेरा, अब कैसे गीत गाऊँ मैं!
तुमने ही जो ठुकरा दिया, अब किस से  प्रीत लगाऊं मैं!

सूना सूना सब तुम बिन, रात अँधेरी फीके दिन!
तुम पे जो मैंने गीत लिखे, किसको आज सुनाऊँ मैं!!

रूठे स्वर, रूठी मन वीणा,मुश्किल हुआ तन्हा  जीना!
कहो प्रिये! अब तुम बिन, कैसे आज गुनगुनाऊँ मैं!!

सताती हर पल तेरी, यादें बीता मौसम बीती बातें!
टूटी कसमें, टूटें वादें, किसपे आज मर जाऊं मैं!!
       -डॉ. सत्यवान वर्मा सौरभ ,३३३, कविता निकेतन , बडवा,( भिवानी) हरियाणा - 127045

kavita

डॉ. सत्यवान वर्मा की रचनाये देश भर  के अखबारों में सम्मान सहित  प्रकाशित हो रही हैं . इस युवा कवी के दोहे पूरे भारत में पढ़े जा रहे हैं .