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शुक्रवार, 3 दिसंबर 2010

डॉ0 सत्यवान वर्मा सौरभ  के प्रेम में डूबे  दोहे

prem pyar ke dohe
मैं तो प्यासा राही हूँ, तुम हो बहती धार।
पिला दो साथी तुम मुझे, भर भर अंजुलि प्यार।।
 
जब तुमने यूँ प्यार से, देखा मेरे मीत।
थिरकन पांवों में सजी, होंठों पे संगीत।।
 
पंछी बन के उड़ चले, मेरे सब अरमान।
देख बिखेरी प्यार से,जब तुमने मुस्कान।।
 
छुप छुप नैना जब लगे,करने आपस बात।
बिन कहे हम जान गए, दिल के सब जज्बात।।
 
लौटा तेरे शहर में, जब मैं बरसों बाद।
आंसू बन होने लगी, यादों की बरसात।।
 
तुम साथी दिल में रहे, जीवन भर आबाद।
क्या तुमने भी किया किसी वक्त हमें याद।।
 
आँखों में हो तुम बसे,दिन हो चाहे रात।
साथी तेरे बिन लगे, सूखी हर सौगात।।
 
लिख के खत से तुम कभी, भेजो साथी हाल।
खत पाए अब आपका, बीते काफी साल।।
 
खुदा मानकर आपको, सजदे किये हजार।
फिर क्यों छोड़ चले मुझे, यूँ बीच मंझधार।।
 
बिछुड़े साथी तुम कहां, लौटो मेरे पास।
कब से तुमको खोजते, नैन मेरे उदास।।
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- डॉ0 सत्यवान वर्मा सौरभ 
कविता निकेतन,बड़वा भिवानी
हरियाणा-127045
e-mail: kavitaniketan333@gmail.com