उषा उतरी पूरब से , कर सोलह श्रृंगार !
मानो दुल्हन लिए खड़ी, कोई हीरक हार !!
नदियाँ तट पे जब हवा, गए फाल्गुन राग !
भोरें आतुर हो उठे , पाने मस्त पराग !!
नयी सुबह का आगमन, लगे तीज -त्यौहार !
मिलजुल के गाये सभी, कोई गीत मल्हार !!
बस आडम्बर रूप है , पूजा-जप-तप ध्यान !
मन की आँखें देखती , कण -कण में भगवान!!
रोम -रोम में आप हो , आप रमें हर पोर !
आप मिले सब कुछ मिला , बाकि है क्या और !!
मानव को कैसे मिले , जीने का अधिकार !
बना रहे हर रोज हम , खतरनाक हथियार !!
मानो दुल्हन लिए खड़ी, कोई हीरक हार !!
नदियाँ तट पे जब हवा, गए फाल्गुन राग !
भोरें आतुर हो उठे , पाने मस्त पराग !!
नयी सुबह का आगमन, लगे तीज -त्यौहार !
मिलजुल के गाये सभी, कोई गीत मल्हार !!
बस आडम्बर रूप है , पूजा-जप-तप ध्यान !
मन की आँखें देखती , कण -कण में भगवान!!
रोम -रोम में आप हो , आप रमें हर पोर !
आप मिले सब कुछ मिला , बाकि है क्या और !!
मानव को कैसे मिले , जीने का अधिकार !
बना रहे हर रोज हम , खतरनाक हथियार !!
आपकी सुन्दर रचना पढ़ी, सुन्दर भावाभिव्यक्ति , शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंकृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारने की अनुकम्पा करें.
bahut sunder...........
जवाब देंहटाएंhttp://anamsingh.blogspot.com