जिनके हाथों डोर दी , बेचा उनने देश !
भूख -गरीबी के सिवा , छोड़ा क्या है शेष !!
थाने इज्ज़त लूटतें, कोर्ट करे अन्याय !
बोलो मेरे राम अब, कहाँ मिलेगा न्याय !!
ऊँच-नीच के भेद सब, माती देत मिटाय!
माटी में मिलके सभी, एक रूप हो जाय !!
माटी चन्दन मानिये , माटी गुण की खान !
इस माटी में ही पले, राम-कृषण भगवान!!
बसंत ऋतू के साज़ पर , फूलों ने दी ताल !
सरसों नाची खेत में , थिरकी सारी डाल !!
भूख -गरीबी के सिवा , छोड़ा क्या है शेष !!
थाने इज्ज़त लूटतें, कोर्ट करे अन्याय !
बोलो मेरे राम अब, कहाँ मिलेगा न्याय !!
ऊँच-नीच के भेद सब, माती देत मिटाय!
माटी में मिलके सभी, एक रूप हो जाय !!
माटी चन्दन मानिये , माटी गुण की खान !
इस माटी में ही पले, राम-कृषण भगवान!!
बसंत ऋतू के साज़ पर , फूलों ने दी ताल !
सरसों नाची खेत में , थिरकी सारी डाल !!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति, बधाई.
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