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बुधवार, 9 नवंबर 2011

कविता के छंद!!

कविता आनंददायिनी, लेती मन को जीत!
मानो कोयल गा रही, कोई मीठा गीत !!

कविता कंगन बोल है, पायल की झंकार  !
सच में दुल्हन-सी लगे, किये छंद श्रृंगार !

कविता है कामायनी, गीता का उपदेश ! !
जीवन को ये संवारती, बनकर हितोपदेश !!

हर कविता में है छुपी, कवि हृदय की पीर !
दुःख मीरा का है कहीं, रोता कहीं कबीर !!

उमड़े मन में जब कहीं, भावों का मकरंद !
चुपके चुपके फूटतें, तब  कविता के छंद !!

सजनी आकर बैठती, जब चुपके से पास !
कविताओं के बोल में, शब्द ढले अनायास !!

छंद दुखों का बन गया, जब ये जीवन गीत!
तब कविता बन के रही, मेरा सच्चा मीत !!

तब कविता कह डालती, मन की सारी बात !!
कह ना पाए बोल जब, दर्द भरें जज्बात !

1 टिप्पणी:

  1. बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति , बधाई.


    कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारने का कष्ट करें, आभारी होऊंगा .

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