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सोमवार, 26 दिसंबर 2011

देख बुरे हालात !

आज़ादी के बाद भी, देश रहा कंगाल !
जेबें अपनी भर  गए, नेता और दलाल !!

क़र्ज़ गरीबों का घटा, कहे भला सरकार!
विधना के खाते रही, बाकि वही उधार!!

हर क्षेत्र में हम बढे, साधन है भरपूर !
फिर क्यों फंदे झूलते, बेचारे मजदूर !!


 लोकतंत्र अब रो रहा, देख बुरे हालात !
संसद में चलने लगे, थप्पड़-घुसे लात !!

देश बाँटने में लगी, नेताओं की फौज !
खाकर पैसा देश का, करते सारे मौज !!

फूंकेगी क्या-क्या भला, ये आतंकी आग !
लाखों  बेघर हो गए, लाखों मिटे सुहाग !!



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