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शनिवार, 3 दिसंबर 2011

हो जाता है खून !

मन से मन का मेल हो, पले  प्यार भरपूर !
मानवता के पथ खुले, भेद रहे सब दूर !!

अपने हित में साथियों , कर लो इतना ख्याल !
दो बच्चों से घर सदा, रहता है खुशहाल !!

अब तो आये रोज ही , टूट रहे परिवार !
फूट-कलह ने खींच दी , हर आँगन दीवार !!

अपराधी अब छूटते, तोड़े सभी विधान !
निर्दोषी हवालात में ,वाह! मेरे संविधान !!

पद-पैसे की आड़ में ,बिकने लगा विधान!
सरेआम अब घूमतें, अपराधी-शैतान !!

कैसी ख़बरें ला रहा , रोज-रोज अखबार !
हर पन्ने पे खून है , हर अक्षर दुराचार!!

जब पैसों के मोल में, बिकता है कानून !
खंजर बिना गरीब का , हो जाता है खून !!










शुक्रवार, 2 दिसंबर 2011

कोई गीत मल्हार !!

उषा उतरी पूरब से , कर सोलह श्रृंगार !
मानो दुल्हन लिए खड़ी, कोई हीरक हार !!

नदियाँ तट पे जब हवा, गए फाल्गुन राग !
भोरें आतुर हो उठे , पाने मस्त पराग !!

नयी सुबह का आगमन, लगे तीज -त्यौहार !
मिलजुल के गाये सभी, कोई गीत मल्हार !!



बस आडम्बर रूप है , पूजा-जप-तप ध्यान !
मन की आँखें देखती , कण -कण में भगवान!!

रोम -रोम में आप हो , आप रमें हर पोर !
आप मिले सब कुछ मिला , बाकि है क्या और !!

मानव को कैसे मिले , जीने का अधिकार !
बना रहे हर रोज हम , खतरनाक हथियार !!





गुरुवार, 1 दिसंबर 2011

बोलो मेरे राम

जिनके हाथों डोर दी , बेचा उनने देश !
भूख -गरीबी के सिवा , छोड़ा क्या है शेष !!

थाने इज्ज़त लूटतें, कोर्ट करे अन्याय !
बोलो मेरे राम अब, कहाँ मिलेगा न्याय !!



ऊँच-नीच के भेद सब, माती देत मिटाय!
माटी में मिलके सभी, एक रूप हो जाय !!

माटी चन्दन मानिये , माटी गुण की खान !
इस माटी में ही पले, राम-कृषण भगवान!!

बसंत ऋतू के साज़ पर , फूलों ने दी ताल !
सरसों नाची खेत में , थिरकी सारी डाल !!









बुधवार, 9 नवंबर 2011

कविता के छंद!!

कविता आनंददायिनी, लेती मन को जीत!
मानो कोयल गा रही, कोई मीठा गीत !!

कविता कंगन बोल है, पायल की झंकार  !
सच में दुल्हन-सी लगे, किये छंद श्रृंगार !

कविता है कामायनी, गीता का उपदेश ! !
जीवन को ये संवारती, बनकर हितोपदेश !!

हर कविता में है छुपी, कवि हृदय की पीर !
दुःख मीरा का है कहीं, रोता कहीं कबीर !!

उमड़े मन में जब कहीं, भावों का मकरंद !
चुपके चुपके फूटतें, तब  कविता के छंद !!

सजनी आकर बैठती, जब चुपके से पास !
कविताओं के बोल में, शब्द ढले अनायास !!

छंद दुखों का बन गया, जब ये जीवन गीत!
तब कविता बन के रही, मेरा सच्चा मीत !!

तब कविता कह डालती, मन की सारी बात !!
कह ना पाए बोल जब, दर्द भरें जज्बात !

सोमवार, 7 नवंबर 2011

मुझको तुम्हारा प्यार चाहिए !!

कर दे जो मन को तृप्त  
ऐसा एक उपहार चाहिए !
बुझ जाये मन की प्यास ,
मुझको तुम्हारा प्यार चाहिए !!

चाहे अब ये मन नहीं , झरने सा व्याकुल बहना !
चुभन काँटों की लिए , डूबा यादों में रहना !!

दर्द का जो स्वाद बदल दे 
मुझको वो अहसास चाहिए !
बुझ जाये मन की प्यास ,
मुझको तुम्हारा प्यार चाहिए !!

जब- जब तुझपे गीत लिखा ,  नाम तेरे मेरे  मीत लिखा !
 कैसे भूले तुझको साथी , हार को भी मैंने जीत लिखा !!

 पूछो कभी तो हाल मेरा,
अब ना मुझे इंतज़ार चाहिए !
बुझ जाये मन की प्यास ,
मुझको तुम्हारा प्यार चाहिए !!

 उजड़ा उजड़ा जीवन हैं , पीड़ा के छण पी रहा !
 आकर के तुम देख लो, कैसे हूँ मैं जी रहा !!

मन वासंती फिर हो जाये , 
मुझको वही फुहार चाहिए !!
बुझ जाये मन की प्यास ,
मुझको तुम्हारा प्यार चाहिए !!

रविवार, 6 नवंबर 2011

अब कौन बताये ??

चेहरे हैं सब क्यों मुरझाये , अब कौन बताये ?
क्यों फैलें दहशतगर्दी के साये , अब कौन बताये ??

कभी होकर कुर्बान जो देश पे अमर हुए थे ,
सपूत वही आज क्यों घबराये , अब कौन बताये ?

कौन हैं कातिल भारत माँ के सब अरमानों का ,
है हर चेहरा नकाब लगाये, अब कौन बताये ?

लिखूं क्या कहानी मैं वतन पे मिटने वालों की ,
वो तो मरकर भी मुस्कराए , अब कौन बताये ?

ये शब्दों की आजाद शमां यूं ही जलती जाएगी ,
बुझे ना दिल की आग बुझाह्ये, अब कौन बताये ?

इस माटी में जन्मा मैं एक रोज इसी में मिल जाऊँगा,
है अरमान काम देश के आये, अब कौन बताये ?

इबै न मारै मने

हाथ जोड़ कहूं अम्मा मेरी 
मैं हूँ बिन जन्मी नादान, इबै न मारै मने !

सै छह महीने का गर्भ तेरा 
ना छिनै माँ तू नसीब मेरा 
अम्मा मेरी मैं हूँ तेरी संतान !!


मैं भी तेरे आँगन खेलूंगी 
तेरे दुखरे मिलके झेलूंगी 
अम्मा मेरी बात मेरी तू मान !

मान मने भी धन तू अपना 
पूरा करूँ तेरा हर एक सपना 
अम्मा मेरी के तनै नुकसान!

बदल्या टेम सै लीक तोड़ तू 
अपनी बिटिया तै प्रीत जोड़ तू 
अम्मा मेरी मैं हूँ तेरी जान !!

हाथ जोड़ कहूं अम्मा मेरी 
मैं हूँ बिन जन्मी नादान, इबै न मारै मने !