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सोमवार, 11 जनवरी 2021

दादी का संदूक !

 दादी का संदूक !

★★★

स्याही-कलम-दवात से, सजने थे जो हाथ !
कूड़ा-करकट बीनते, नाप रहें फुटपाथ !!
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बैठे-बैठे जब कभी, आता बचपन याद !
मन चंचल करने लगे, परियों से संवाद !!
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मुझको भाते आज भी, बचपन के वो गीत !
लोरी गाती मात की, अजब-निराली प्रीत !!
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मूक हुई किलकारियां, चुप बच्चों की रेल !
गूगल में अब खो गए,बचपन के सब खेल !!
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छीन लिए हैं फ़ोन ने, बचपन के सब चाव !
दादी बैठी देखती, पीढ़ी में बदलाव !!
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बचपन में भी खूब थे, कैसे- कैसे खेल !
नाव चलाते रेत में, उड़ती नभ में रेल !!
★★★
यादों में बसता अभी, बचपन का वो गाँव !
कच्चे घर का आँगना, और नीम की छाँव !!
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लौटा बरसों बाद मैं , उस बचपन के गाँव !
नहीं बची थी अब जहां, बूढी पीपल छाँव !!
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नहीं रही मैदान में, बच्चों की वो भीड़ !
लगे गेम आकाश से, फ़ोन बने हैं नीड़ !!
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धूल आजकल चाटता, दादी का संदूक !
बच्चों को अच्छी लगे,अब घर में बन्दूक !!
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✍ - डॉo सत्यवान सौरभ,
रिसर्च स्कॉलर,कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,

7 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (13-01-2021) को "उत्तरायणी-लोहड़ी, देती है सन्देश"  (चर्चा अंक-3945)   पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    -- 
    हर्षोंल्लास के पर्व लोहड़ी की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

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