आज़ादी के बाद भी, देश रहा कंगाल !
जेबें अपनी भर गए, नेता और दलाल !!
क़र्ज़ गरीबों का घटा, कहे भला सरकार!
विधना के खाते रही, बाकि वही उधार!!
हर क्षेत्र में हम बढे, साधन है भरपूर !
फिर क्यों फंदे झूलते, बेचारे मजदूर !!
लोकतंत्र अब रो रहा, देख बुरे हालात !
संसद में चलने लगे, थप्पड़-घुसे लात !!
देश बाँटने में लगी, नेताओं की फौज !
खाकर पैसा देश का, करते सारे मौज !!
फूंकेगी क्या-क्या भला, ये आतंकी आग !
लाखों बेघर हो गए, लाखों मिटे सुहाग !!
जेबें अपनी भर गए, नेता और दलाल !!
क़र्ज़ गरीबों का घटा, कहे भला सरकार!
विधना के खाते रही, बाकि वही उधार!!
हर क्षेत्र में हम बढे, साधन है भरपूर !
फिर क्यों फंदे झूलते, बेचारे मजदूर !!
लोकतंत्र अब रो रहा, देख बुरे हालात !
संसद में चलने लगे, थप्पड़-घुसे लात !!
देश बाँटने में लगी, नेताओं की फौज !
खाकर पैसा देश का, करते सारे मौज !!
फूंकेगी क्या-क्या भला, ये आतंकी आग !
लाखों बेघर हो गए, लाखों मिटे सुहाग !!