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गुरुवार, 12 मार्च 2015

श्री महेंद्र जैन जी के आवास पर हिसार में चन्दन बल जैन मंच की ओर से काव्य गोष्ठी में


२२ फेब्रुअरी २०१५ को भिवानी में सम्मान समारोह




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तितली है खामोश ४०-४५
रखते जितना साफ़ है,मन से पूजा-पाठ !
वैसे घर-गालियां बने,हो जायेंगे ठाठ !!
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जाति-धर्म है बाद में,पहले है इंसान !
बूँद-बूँद पानी बचे,करे सभी ये ध्यान !!
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बिन पानी के जग लगे,सूखा रेगिस्तान !
पानी से ही मानिये,जीवन ये श्रीमान !!
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धरती कहे किसान से,जाओ अब तो चेत!
काट -काटकर खा गए,रासायन खुद खेत !!
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उड़ते पंछी कह रहे,छोडो मजहब यार !
थोड़ा उठकर देखिये,छोटा सा संसार !!
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तितली है खामोश ३५-४०

नारी मूरत प्यार की,ममता का भंडार !
सेवा को सुख मानती,बांटे खूब दुलार !!
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तेरे आँचल में छुपा, कैसा ये अहसास !
सोता हूँ माँ चैन से,जब होती हो पास !!
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बिटिया को कब छीन ले,ये हत्यारी रीत !
घूम रही घर में बहू,हिरणी सी भयभीत !!
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अपना सब कुछ त्याग के,हरती नारी पीर !
फिर क्यों आँखों में भरा,आज उसी के नीर !!
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नवराते मुझको लगे,यारों सभी फिजूल !
नौ दिन कन्या पूजकर ,सब जाते है भूल !!
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तितली है खामोश २५-३० 

बीवी-बेटी-माँ -बहन,सब नारी के रूप !
देते शीतल छाँव है,सहकर जलती धूप!!
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ढूंढ रही मुंडेर अब,तोते -कौवे -मोर !
डूब मशीनी शोर में,होती देखो भोर !!
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देकर अपनी जान जो, छोड़ गए है ताज़!
उन वीरों के खून को, याद करे सब आज !!
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ढोंगी बाबा जेल में, देखो आँखें खोल !
कानून बनकर देवता,खोले सबकी पोल !!
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तुम साथी दिल में रहे,जीवन भर आबाद !!
क्या तुमने भी है किया,पलभर हमको याद !!
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तितली है खामोश २०-२५

जब गाता हूँ गीत मैं ,खनक उठे अवसाद !
पता नही किस बात की,मिलती मुझको दाद !!
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आंसू भी कुछ कह रहे,देखो मन से बांच !
हाल हृदय का बोलते,जैसे तन का कांच !!
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तन से तन का मेल तो,किस्मत का त्यौहार !
मन से मन का बोलना,मन-भावन उपहार !!
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चादर एक समेटती,दुखियों का संसार !
दर्द-दर्द को जानता,जुड़ता मन का प्यार !!
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प्रेम-करुणा-स्नेह का,जिस घर में हो वास !
ऎसे घर आँगन सदा,रहें खूब उल्लास !!
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----सत्यवान वर्मा सौरभ
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 —Ramniwas

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तितली है खामोश ३०-३५

सब पैसों के दोस्त है,बस पैसों से प्यार !
देख सुदामा सोचता,मिले कहाँ अब यार !!
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नागफनी है बात में.मन में उगे बबूल !
बोलो कैसे प्यार के, महके यारों फूल !!
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हँसना-रोना साथियों,जीवन की है रीत !
जीयें जी भर ज़िंदगी,हार मिले या जीत !!
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बदले-बदले से लगे,पहने लोग नकाब !
मन में कांटें है छुपे,पर चेहरे गुलाब !!
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ढाई अक्षर प्रेम के,भर दे ऐसा भाव !
ज्योंज्यों बीते ज़िंदगी,त्योंत्यों बढे लगाव !!
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