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शुक्रवार, 27 फ़रवरी 2015

आप सभी मित्रों के समक्ष ----तितली है खामोश---- की चौथी पोस्ट सादर हाज़िर है ...आपके सुझावों और प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा में .....आपका दोस्त .....सत्यवान वर्मा सौरभ
तितली है खामोश १५ -२० 

सजनी तेरे सँग रचूँ,ऐसा एक धमाल !
तुझमे खुद को घोल दूँ,जैसे रंग गुलाल !
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बदले-बदले रंग है,सूना-सूना फाग !
ढपली भी गाने लगी,अब तो बदले राग!
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फागुन बैठा देखता,खाली हैं चौपाल !!
उतरे-उतरे रंग है,फीके सभी गुलाल !
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मन को ऐसे रंग लें ,भर दें ऐसा प्यार !
हर पल हर दिन ही रहे,होली का त्यौहार
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फौजी साजन से करे,सजनी एक सवाल !
भीगी सारी गोरियाँ,मेरे सूने गाल !!
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2 टिप्‍पणियां:

  1. सार्थक प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (28-02-2015) को "फाग वेदना..." (चर्चा अंक-1903) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बहुत सुन्दर और प्रभावी प्रस्तुति...

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