कविता आनंददायिनी, लेती मन को जीत!
मानो कोयल गा रही, कोई मीठा गीत !!
कविता कंगन बोल है, पायल की झंकार !
सच में दुल्हन-सी लगे, किये छंद श्रृंगार !
कविता है कामायनी, गीता का उपदेश ! !
जीवन को ये संवारती, बनकर हितोपदेश !!
हर कविता में है छुपी, कवि हृदय की पीर !
दुःख मीरा का है कहीं, रोता कहीं कबीर !!
उमड़े मन में जब कहीं, भावों का मकरंद !
सजनी आकर बैठती, जब चुपके से पास !
कविताओं के बोल में, शब्द ढले अनायास !!
छंद दुखों का बन गया, जब ये जीवन गीत!
तब कविता बन के रही, मेरा सच्चा मीत !!
तब कविता कह डालती, मन की सारी बात !!
कह ना पाए बोल जब, दर्द भरें जज्बात !
मानो कोयल गा रही, कोई मीठा गीत !!
कविता कंगन बोल है, पायल की झंकार !
सच में दुल्हन-सी लगे, किये छंद श्रृंगार !
कविता है कामायनी, गीता का उपदेश ! !
जीवन को ये संवारती, बनकर हितोपदेश !!
हर कविता में है छुपी, कवि हृदय की पीर !
दुःख मीरा का है कहीं, रोता कहीं कबीर !!
उमड़े मन में जब कहीं, भावों का मकरंद !
चुपके चुपके फूटतें, तब कविता के छंद !!
सजनी आकर बैठती, जब चुपके से पास !
कविताओं के बोल में, शब्द ढले अनायास !!
छंद दुखों का बन गया, जब ये जीवन गीत!
तब कविता बन के रही, मेरा सच्चा मीत !!
तब कविता कह डालती, मन की सारी बात !!
कह ना पाए बोल जब, दर्द भरें जज्बात !