जहर आज भी पी रहा, बनता जो सुकरात ! कौन कहे है सत्य के, बदल गए हालात !! ✍ - डॉo सत्यवान सौरभ,
सोमवार, 9 फ़रवरी 2015
शनिवार, 5 जुलाई 2014
यार तू जिगर एक आसमानी बन !
आंधी की ना बात कर तूफानी बन !!
क्यों जला रहा खुद से ही खुद को ,
अगर वो आग है तू तो पानी बन !
तुझे क्या हुआ जो उन्होंने भुला दिया,
तेरी याद सताए ऐसी निशानी बन !
वक़्त के साथ बदले,बदलेंगे रिश्ते ,
तेरे दिल में सदा रहे वो जवानी बन !
ग़ज़लें तो बहुत लिखी ग़ालिब ने भी ,
ये नया दौर है नई एक कहानी बन !
क्या कर लेगी ये पतझर सौरभ का,;;
बस सावन की फुहार मस्तानी बन !
आंधी की ना बात कर तूफानी बन !!
क्यों जला रहा खुद से ही खुद को ,
अगर वो आग है तू तो पानी बन !
तुझे क्या हुआ जो उन्होंने भुला दिया,
तेरी याद सताए ऐसी निशानी बन !
वक़्त के साथ बदले,बदलेंगे रिश्ते ,
तेरे दिल में सदा रहे वो जवानी बन !
ग़ज़लें तो बहुत लिखी ग़ालिब ने भी ,
ये नया दौर है नई एक कहानी बन !
क्या कर लेगी ये पतझर सौरभ का,;;
बस सावन की फुहार मस्तानी बन !
पिछले दिनों पहली हरियाणवी फिल्म चंद्रावल के नायक जगत जाखर के घर जाने का सौभाग्य हुआ ! सुन्देर्हेती जिला झज्जर हरियाणा में उनके घर की कुछ यादें .......पशुओं में टीकाकरण करते हुए हम उनके घर के आगे से गुजर रहे थी की किसी ने बताया ये उनका घर है .... जगत जाखर जी के घर का अंदरूनी भाग का मुख्या द्वार के पिता जी आज भी उनका घर हरियाणवी अंचल को समेटे हुए है
रविवार, 5 मई 2013
मेरे सब अरमान !
मैं प्यासा राही रहा , तुम हो बहती धार!
भर-भर अंजुली बाँट दो, मुझको कविते प्यार !!
तुमने जब यूं प्यार से, देखा मेरे मीत !
थिरकन पांवो में सजी, होंठो पे संगीत !!
महक रहा है आज भी , तेरा-मेरा प्यार !
यादों के संसार में , बनकर के गुलज़ार !!
वक़्त हुआ ज्यों धुंधला,भूले सारी बात !
पर भुला हम ना सके , साथी तेरा साथ !!
ख़त वो पहले प्यार का , देखू जितनी बार !
महका-महका-सा लगे, यादों का गुलज़ार !!
पंछी बन के उड़ चले, मेरे सब अरमान !
देख बिखेरी प्यार से, जब तुमने मुस्कान !!
छुप-छुप नैना जब लगे, करने आपस बात !
होंठों पे आने लगे, दिल के सब जज्बात !!
तुम साथी दिल में रहे, जीवन भर आबाद !
बोलो तुमने भी किया , पल भर हमको याद !!
आँखों में बस तुम बसे , दिन हो चाहे रात !
साथी तेरे बिन लगे , सूनी हर सौगात !!
लिखे ख़त से भेजिए, साथी सारा हाल !
ख़त पाए अब आपका , बीते काफी साल !!
बिछड़े साथी तुम कहाँ , लौटो मेरे पास !
कब से तुमको खोजते , मेरे नैन उदास !!
मन दर्पण में देख लू , जब तेरी तस्वीर !
आंसूं बन के बह चले , मेरे मन की पीर !!
खुदा मानकर आपको , सजदे किया हज़ार !
फिर क्यों छोड़ चले मुझे , यूं बीच मंझधार !!
भर-भर अंजुली बाँट दो, मुझको कविते प्यार !!
तुमने जब यूं प्यार से, देखा मेरे मीत !
थिरकन पांवो में सजी, होंठो पे संगीत !!
महक रहा है आज भी , तेरा-मेरा प्यार !
यादों के संसार में , बनकर के गुलज़ार !!
वक़्त हुआ ज्यों धुंधला,भूले सारी बात !
पर भुला हम ना सके , साथी तेरा साथ !!
ख़त वो पहले प्यार का , देखू जितनी बार !
महका-महका-सा लगे, यादों का गुलज़ार !!
पंछी बन के उड़ चले, मेरे सब अरमान !
देख बिखेरी प्यार से, जब तुमने मुस्कान !!
छुप-छुप नैना जब लगे, करने आपस बात !
होंठों पे आने लगे, दिल के सब जज्बात !!
तुम साथी दिल में रहे, जीवन भर आबाद !
बोलो तुमने भी किया , पल भर हमको याद !!
आँखों में बस तुम बसे , दिन हो चाहे रात !
साथी तेरे बिन लगे , सूनी हर सौगात !!
लिखे ख़त से भेजिए, साथी सारा हाल !
ख़त पाए अब आपका , बीते काफी साल !!
बिछड़े साथी तुम कहाँ , लौटो मेरे पास !
कब से तुमको खोजते , मेरे नैन उदास !!
मन दर्पण में देख लू , जब तेरी तस्वीर !
आंसूं बन के बह चले , मेरे मन की पीर !!
खुदा मानकर आपको , सजदे किया हज़ार !
फिर क्यों छोड़ चले मुझे , यूं बीच मंझधार !!
सोमवार, 29 अप्रैल 2013
फिर से नया प्रयास
कांटें साथी जानिए, होते कांटें नेक ।
रह के काँटों बीच ही, खिलते फूल अनेक ॥
बीते कल को भूल के, चुग डाले सब शूल ।
बोयें हम नवभोर पे, सुंदर-सुरभित फूल ॥
पायेगा तू भी कभी, फूलों की सौगात ।
धुन अपनी मत छोड़ना, सुधरेंगे हालात ॥
आओ, काँटों में भरें, फूलों का अहसास ।
महके-महके - से लगे, धरती औ आकाश ॥
उठो, चलो आगे बढ़ो, भूलों दुख की बात ।
आशाओं के रंग में, रंग ले फिर जज्बात ॥
नए दौर में हम करे, फिर से नया प्रयास ॥
लिखे कलम ने शब्द जो , बन जाये इतिहास ॥
बने विजेता वो सदा, ऐसा मुझे यकीन ।
आँखों में आकाश हो, पांवो तले जमीन ॥
साथी कभी ना छोड़िये, नई भोर की आस ।
अंधियारे को चीर के, आता सदा प्रकाश ॥
आसमान को चीर के , वो ही भरे उड़ान ।
जवां हौसलों में सदा , होती जिनके जान ॥
--------------सत्यवान वर्मा सौरभ,
3 3 3 , कविता निकेतन,
वार्ड- 1 4 , गाँव- बड़वा,
तहसील - सिवानी मंडी,
जिला- भिवानी , हरियाणा
मोबाइल -0 9 4 6 6 5 2 6 1 4 8
रह के काँटों बीच ही, खिलते फूल अनेक ॥
बीते कल को भूल के, चुग डाले सब शूल ।
बोयें हम नवभोर पे, सुंदर-सुरभित फूल ॥
पायेगा तू भी कभी, फूलों की सौगात ।
धुन अपनी मत छोड़ना, सुधरेंगे हालात ॥
आओ, काँटों में भरें, फूलों का अहसास ।
महके-महके - से लगे, धरती औ आकाश ॥
उठो, चलो आगे बढ़ो, भूलों दुख की बात ।
आशाओं के रंग में, रंग ले फिर जज्बात ॥
नए दौर में हम करे, फिर से नया प्रयास ॥
लिखे कलम ने शब्द जो , बन जाये इतिहास ॥
बने विजेता वो सदा, ऐसा मुझे यकीन ।
आँखों में आकाश हो, पांवो तले जमीन ॥
साथी कभी ना छोड़िये, नई भोर की आस ।
अंधियारे को चीर के, आता सदा प्रकाश ॥
आसमान को चीर के , वो ही भरे उड़ान ।
जवां हौसलों में सदा , होती जिनके जान ॥
--------------सत्यवान वर्मा सौरभ,
3 3 3 , कविता निकेतन,
वार्ड- 1 4 , गाँव- बड़वा,
तहसील - सिवानी मंडी,
जिला- भिवानी , हरियाणा
मोबाइल -0 9 4 6 6 5 2 6 1 4 8
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