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शनिवार, 5 जुलाई 2014

यार तू जिगर एक आसमानी बन !

आंधी की ना बात कर तूफानी बन !!

क्यों जला रहा खुद से ही खुद को ,

अगर वो आग है तू तो पानी बन !

तुझे क्या हुआ जो उन्होंने भुला दिया,

तेरी याद सताए ऐसी निशानी बन !

वक़्त के साथ बदले,बदलेंगे रिश्ते ,

तेरे दिल में सदा रहे वो जवानी बन !

ग़ज़लें तो बहुत लिखी ग़ालिब ने भी ,

ये नया दौर है नई एक कहानी बन !

क्या कर लेगी ये पतझर सौरभ का,;;

बस सावन की फुहार मस्तानी बन !
पिछले दिनों पहली हरियाणवी फिल्म  चंद्रावल के नायक जगत जाखर के घर जाने का सौभाग्य हुआ ! सुन्देर्हेती जिला झज्जर हरियाणा में उनके घर की कुछ यादें .......पशुओं में टीकाकरण करते हुए हम उनके घर के आगे से गुजर रहे थी की किसी ने बताया ये उनका घर है .... जगत  जाखर जी के घर का अंदरूनी भाग का मुख्या द्वार के पिता जी   आज भी उनका घर हरियाणवी अंचल को समेटे हुए है

आप सभी दोस्तों से माफ़ी  चाहता हूँ पिछले एक साल से मैं अपने ब्लॉग  पर कुछ भी नहीं पोस्ट  कर पाया। इस बीच आप लोगो ने मेरी रचनाओं  को खूब पढ़ा! ख़ुशी हुई, आप सभी के लाइक्स और  कॉल्स ने मेरा विश्वास मजबूत किया !! हार्दिक धन्यवाद ……………।

रविवार, 5 मई 2013

मेरे सब अरमान !

मैं प्यासा राही रहा , तुम हो बहती धार!
भर-भर अंजुली बाँट दो, मुझको कविते प्यार !!

तुमने जब यूं प्यार से, देखा मेरे मीत !
थिरकन पांवो में सजी, होंठो पे संगीत !!

महक रहा है आज भी , तेरा-मेरा प्यार !
यादों के संसार में , बनकर के गुलज़ार !!

वक़्त हुआ ज्यों धुंधला,भूले सारी  बात !
पर भुला हम ना  सके , साथी तेरा साथ !!

ख़त वो पहले प्यार का , देखू जितनी बार !
महका-महका-सा लगे, यादों का गुलज़ार !!

पंछी  बन के उड़ चले, मेरे सब अरमान !
देख बिखेरी प्यार से, जब तुमने मुस्कान !!

छुप-छुप नैना जब लगे, करने आपस बात !
होंठों पे आने लगे, दिल के सब जज्बात !!

तुम साथी दिल में रहे, जीवन भर आबाद !
बोलो तुमने भी किया , पल भर हमको याद !!

आँखों में बस तुम बसे , दिन हो चाहे रात !
साथी तेरे बिन लगे , सूनी हर सौगात !!

लिखे ख़त से भेजिए, साथी सारा हाल !
ख़त पाए अब आपका , बीते काफी साल !!

बिछड़े साथी तुम कहाँ , लौटो मेरे पास !
कब से तुमको खोजते , मेरे नैन उदास !!

मन दर्पण में देख लू , जब तेरी तस्वीर !
आंसूं बन के बह चले , मेरे मन की पीर !!

खुदा मानकर आपको , सजदे किया हज़ार !
फिर क्यों छोड़ चले मुझे , यूं बीच मंझधार !!




सोमवार, 29 अप्रैल 2013

फिर से नया प्रयास

कांटें साथी जानिए, होते कांटें नेक ।
रह के काँटों बीच ही, खिलते फूल अनेक ॥

बीते कल को भूल के, चुग डाले सब शूल ।
बोयें हम नवभोर पे, सुंदर-सुरभित फूल ॥

पायेगा तू भी कभी, फूलों की सौगात ।
धुन अपनी  मत छोड़ना, सुधरेंगे हालात ॥

आओ, काँटों में भरें, फूलों का अहसास ।
महके-महके - से लगे, धरती औ आकाश ॥

उठो, चलो आगे बढ़ो, भूलों दुख की बात ।
आशाओं के रंग में, रंग ले फिर जज्बात ॥

नए दौर में हम करे, फिर से नया प्रयास ॥
लिखे कलम ने शब्द जो , बन जाये इतिहास ॥

बने विजेता वो सदा, ऐसा मुझे यकीन ।
आँखों में आकाश हो, पांवो  तले जमीन ॥ 

साथी कभी ना छोड़िये, नई भोर की आस ।
अंधियारे को चीर के, आता सदा प्रकाश ॥

आसमान को चीर के , वो ही भरे उड़ान ।
जवां हौसलों में सदा , होती जिनके जान ॥ 
         --------------सत्यवान वर्मा सौरभ,
                         3 3 3 , कविता निकेतन,
                         वार्ड- 1 4 , गाँव- बड़वा,
                         तहसील - सिवानी मंडी,
                         जिला- भिवानी , हरियाणा
                        मोबाइल -0 9 4 6 6 5 2 6 1 4 8





रविवार, 13 मई 2012

माँ

माँ   ममता की खान है !
माँ  दूजा भगवान  है !!
माँ की महिमा अपरम्पार ,
माँ  श्रेष्ठ और महान है !!!

माँ कविता, माँ है कहानी !
माँ है  दोहों की जुबानी !!
माँ तो सिर्फ माँ ही है , 
ना हिन्दुस्तानी ,ना  पाकिस्तानी !!!
मेरी पूजनीय माता जी श्रीमती कौशल्या देवी जी 

 माँ है फूलों की बहार !
माँ है सुरीली सितार !!
माँ ताल है , माँ  लय है ,
माँ है जीवन की झंकार !!!

माँ बेद है , माँ ही  गीता !
माँ   बिना ये जग  रीता !!
माँ दुर्गा , माँ कौशल्या , 
माँ सरस्वती , माँ सीता !!!

माँ है तुलसी की चौपाई !
माँ है सावन की पुरवाई !!
माँ कबीर की वाणी में ,
माँ है कालजयी रुबाई  !!!

माँ बगिया है, माँ कानन है !
माँ बसंत -सी मनभावन है !!
 आखिर देवों ने भी माना ,
माँ शब्द बड़ा  पावन है!!!

माँ प्रेम की प्रतिमूर्ति !
माँ श्रधा की आदिशक्ति !!
माँ ही हज ,माँ ही मदीना ,
माँ से बड़ी न कोई भक्ति !!!

माँ है सृष्टि का आगाज़ !
माँ है वीणा की आवाज़ !!
माँ है मंदिर , माँ मस्जिद ,
माँ प्रार्थना , माँ है नमाज़ !!!

माँ है गंगा- सी अनूप !
माँ धरती पे  हरी धूब !!
माँ दुःख हरनी माँ कल्याणी,
 अजब  निराले माँ के रूप!!!
- डॉ सत्यवान वर्मा सौरभ , 
333 कविता निकेतन , 
गाँव - बडवा , जिला - भिवानी ,
 हरियाणा - 127 045 
मोबाइल-09466526148 



सोमवार, 27 फ़रवरी 2012

माँ

माँ कविता है, गीत है, है ममता  की खान !
इस धरती पे है वही,. एक रूप भगवान!!

ममता मानो चल बसी, लज्जित माँ की जात !
बीच झाड़ियों जब मिला , एक शिशु नवजात !!