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सोमवार, 24 अक्टूबर 2011

माँ वीणा की झंकार भर दो !

माँ वीणा वादिनी, मधुर स्वर दो !
हर  जिह्वा वैभवयुक्त कर  दो !!
मन  सारे स्नेहमय हो जाये,
जीवन में वो अमृत भर दो!!

माँ वीणा की झंकार भर दो !
दिल में नवल संचार कर दो !!
हर डाली खूश्बूमय हो जाये ,
ऐसे सब गुलज़ार कर दो !!

अंतस तम को दूर कर दो !
अंधियारे को नूर कर दो !!
मन से मन का हो मिलन,
भेद सारे चूर कर दो !!

गान कर माँ रागिनी का !
भान कर माँ वादिनी का !!
पूरी हो माँ सब कामनाएं,
दो सुर माँ रागिनी का !!
                   __डॉक्टर सत्यवान  वर्मा सौरभ

शनिवार, 22 अक्टूबर 2011

सब के पास उजाले हो !!


मानवता का सन्देश फैलाते, मस्जिद और शिवाले हो !
नीर प्रेम का भरा हो सब में, ऐसे सबके प्याले हो !!
 होली जैसे रंग हो बिखरे, दीपों की बारात सजी हो ,
अंधियारे का नाम न हो, सब के पास उजाले हो !!

हो श्रृद्धा और विश्वास सभी में, नैतिक मूल्य पाले हो !
संस्कृति का करे सब पूजन, संस्कारों के रखवाले हो !!
चौराहों पे न लुटे अस्मत , दुशासन ना बढ़ पाएं ,
भूख, गरीबी, आंतक  मिटे, ना देश में धंधे काले हो !

सच्चाई को मिले आजादी और लगे झूठ पर तालें हो !
तन को कपडा सिर को साया, सब के पास निवाले हो !!
दर्द किसी को छू ना पाये, ना किसी आँख से आंसूं आये,
झोंपड़ियों के आँगन में भी खुशियों  की फैली डालें हो !!

जिए और जीने दे ना चलते कहीं बरछी भाले हो !
हर दिल में हो भाईचारा, नाग ना पलते काले हो !!
नगमो- सा हो जाये जीवन, फूलों भरा हो हर आँगन ,
सुख ही सुख मिले सभी को, एक दूजे को सम्हाले हो !!!












रविवार, 16 अक्टूबर 2011

कविता-सौरभ: टूट गए अनुबंध

कविता-सौरभ: टूट गए अनुबंध: मन रहता व्याकुल सदा, पाने माँ का प्यार ! लिखी मात की पतियाँ, बांचूं बार हज़ार !! अंतर्मन गोकुल हुआ, जाना जिसने प्यार ! मोहन हृदय में बसे, रह...

टूट गए अनुबंध

मन रहता व्याकुल सदा, पाने माँ का प्यार !
लिखी मात की पतियाँ, बांचूं बार हज़ार !!

अंतर्मन गोकुल हुआ, जाना जिसने प्यार !
मोहन हृदय में बसे, रहते नहीं विकार !!

बना दिखावा प्यार अब, लेती हवास उफान !
राधा के तन पे लगा, अब मोहन का ध्यान !!

बस पैसों के दोस्त हैं, बस पैसों से प्यार !
बैठ सुदामा सोचता,मिले कहाँ अब यार !!

दुखी गरीबों पे सदा, जो बाँटें हैं प्यार !
सपने उसके सब सदा, होते हैं साकार !!

आपस में जब प्यार हो , फलें खूब व्यवहार !
रिश्तों की दीवार में, पड़ती नहीं दरार !! 

नवभोर में  फूलें  फलें , मन में निश्चल प्यार !
आँगन-आँगन फूल हो , महकें बसंत बहार !!

रखें हृदय में प्यार जो, बांटें हृदय में प्यार !
उसके घर आँगन सदा, आये दिन त्यौहार !!

जहाँ महकता प्यार हो, धन न बने दीवार !
वहां कभी होती नहीं, आपस में तकरार !!

प्यार वासनामय हुआ, टूट गए अनुबंध !
बिखरे-बिखरे से लगे, अब मीरा के छंद !!

शनिवार, 15 अक्टूबर 2011


यादों का गुलज़ार !!

मैं प्यासा राही रहा, तुम हो बहती धार!
भर-भर अंजुली बाँट दो,मुझको कविते प्यार !!

जब तुमने यूं प्यार से ,देखा मेरे मीत !
थिरकन पांवो में सजी,होंठो पे संगीत!!

महक रहा हैं आज भी, तेरा-मेरा प्यार !
यादों के संसार में , बनकर के गुलजार !!

चलते-चलते जब कहीं, तुम आते हो याद !
आँखों से होने लगे, आंसूं की बरसात !!

वक्त हुआ ज्यों धुंधला, भूले सारी बात !
पर भुला ना हम सके, साथी तेरा साथ !!

ख़त वो पहले प्यार का, देखू जितनी बार !
महका-महका-सा लगे, यादों का गुलज़ार !!

पंछी बन के उड़ चले, मेरे सब अरमान !
देख बिखेरी प्यार से, जब तुमने मुस्कान !!

छुप-छुप नैना जब लगे, करने आपस बात !
बिन कहे हम कह गए,दिल के सब जज्बात !!

लौटा तेरे शहर में, जब मैं बरसों बाद !
आंसूं बन होने लगी, यादों की बरसात !!






तुम साथी दिल में रहे, जीवन भर आबाद !
क्या तुमने भी किया, किसी वक्त हमें याद !!

आँखों में बस तुम बसे, दिन हो चाहे रात !
साथी तेरे बिन लगे, सूनी हर सौगात !!

लिखके ख़त से भेजिए, साथी सारा हाल !
ख़त पाए अब आपका, बीतें काफी साल !!

खुदा मानकर आपको, सजदे किये हज़ार !
फिर क्यों छोड़ चले, यूं बीच  मंझधार !!

मन दर्पण में देख लूं , जब तेरी  तस्वीर !
आंसूं बन के बह चले, मेरे मन की पीर !!

बिछुड़े साथी तुम कहाँ, लौटों मेरे पास !
कब से तुमको खोजते, नैन मेरे उदास !!