www.blogvarta.com

सोमवार, 11 जनवरी 2021

दादी का संदूक !

 दादी का संदूक !

★★★

स्याही-कलम-दवात से, सजने थे जो हाथ !
कूड़ा-करकट बीनते, नाप रहें फुटपाथ !!
★★★
बैठे-बैठे जब कभी, आता बचपन याद !
मन चंचल करने लगे, परियों से संवाद !!
★★★
मुझको भाते आज भी, बचपन के वो गीत !
लोरी गाती मात की, अजब-निराली प्रीत !!
★★★
मूक हुई किलकारियां, चुप बच्चों की रेल !
गूगल में अब खो गए,बचपन के सब खेल !!
★★★
छीन लिए हैं फ़ोन ने, बचपन के सब चाव !
दादी बैठी देखती, पीढ़ी में बदलाव !!
★★★















बचपन में भी खूब थे, कैसे- कैसे खेल !
नाव चलाते रेत में, उड़ती नभ में रेल !!
★★★
यादों में बसता अभी, बचपन का वो गाँव !
कच्चे घर का आँगना, और नीम की छाँव !!
★★★
लौटा बरसों बाद मैं , उस बचपन के गाँव !
नहीं बची थी अब जहां, बूढी पीपल छाँव !!
★★★
नहीं रही मैदान में, बच्चों की वो भीड़ !
लगे गेम आकाश से, फ़ोन बने हैं नीड़ !!
★★★
धूल आजकल चाटता, दादी का संदूक !
बच्चों को अच्छी लगे,अब घर में बन्दूक !!
★★★
✍ - डॉo सत्यवान सौरभ,
रिसर्च स्कॉलर,कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,

The elderly should be seen as a blessing, not a burden.

 The elderly should be seen as a blessing, not a burden.


(In the changing environment, single families are keeping the elders away from the threshold of the house. The children have started liking Pabji rather than the story of dadi and Nani, the elders have loved talking to their children. They are lonely in any corner of the house. In such a situation, their mental-economic-social problems are increasing. Pension is decreasing in front of inflation. We need to bring separate schemes for the elderly along with their health care by involving the elderly in Ayushman Yojana. )

In our country, the elderly are increasing rapidly, but the resources available to them are becoming less. In such a situation, it is our responsibility that instead of keeping them aside, they should be integrated into the lives of communities to take care of their physical and mental care, where they can contribute enough to improve social conditions. It is very important to try to convert the 'problem' of the elderly into a 'solution'.





 In the Corona era, the elderly population and health challenges have emerged in the country, scientific investigation of the health, economic and social determinants and consequences of the aging population in India has been the largest comprehensive national survey in the country. It is India's first and the world's largest-ever survey that provides a longitudinal database to formulate policies and programs for the elderly population on social, health, and economic well-being. This includes representative sample socioeconomic landscape of the country and states, broad, contextual focus, longitudinal design, data collection, quality control, and use of Computer Assisted Personal Interviewing (CAPI) technology for Geographic Information System (GIS). This will coordinate various national health programs.

Keeping in mind the emerging trends in demographic, socio-economic, and other relevant areas in the country, the Ministry of Social Justice and Empowerment is creating a national policy for senior citizens, covering issues such as financial and food security, health care, and nutrition.  In developing India, in the future, the population will be healthy and will live longer. Research indicates that 12% of India's population will be 60 years of age by 2030 and according to the United Nations Population Fund; It is expected to increase to 19.4% by 2050.

There are going to be more women than men in the 60+ age group. Longevity has increased the number of people over the age of 80, accounting for about 11 million people. India will have the largest number by 2050, with around 6 lakh people over 100 years of age. The number of senior citizens increased from 10.38 crore in 2011 to 17.3 crore in 2026 and 30 crores in 2050. In such a situation the need for programs for their welfare increases.

Increased life expectancy, coupled with the nuclearization of families, their day-to-day maintenance, and dependence on others for age-related difficulties; is a difficult challenge for the lives of elderly people. The problem increases for older women due to greater economic dependence. In rural areas, where 70% of the elderly live, economic conditions and poor quality of medical services lead to serious conditions, especially for those above 80 years of age. 5.1 crore elderly population is living below the poverty line and due to increasing crimes against senior citizens, the condition of elderly people is pathetic.

The percentage of senior citizens of India has been increasing at an increasing rate in recent years and this trend is likely to continue. According to the State of World Population 2019 report, six percent of India's population was 65 years and above. An increase in life expectancy, although desirable, has led to new challenges for the modern world. The problem of the increasing population has become a matter of concern for many countries today. Provisions for pensions and healthcare are budget deficient. With more than 100 million elderly homes and the number expected to triple in number over the next three decades, India will face many challenges.

In the changing environment, single families are keeping the elderly away from the threshold of the home. The children have started liking Pabji rather than the story of grandmother and grandmother, the elderly have longed to talk to their children. They are falling prey to loneliness in any corner of the house. In such a situation, their mental-economic-social problems are increasing. Pension is decreasing in front of inflation. There is a dire need to bring separate schemes for the elderly along with their health care by involving the elderly in Ayushman Yojana. So that elder is seen as a blessing in every house, not a burden.


✍ - Dr. Satyavan Saurabh,
Research Scholar, poet, freelance journalist, and columnist,







बुजुर्ग हमारे वजूद है न कि बोझ

 बुजुर्ग हमारे वजूद है न कि बोझ  


(बदलते परिवेश में एकल परिवार बुजुर्गों को घर  की  दहलीज से दूर कर रहें है. बच्चों को दादी- नानी  की  कहानी की बजाय पबजी अच्छा लगने लगा है, बुजुर्ग अपने बच्चों से बातों को तरस गए है. वो  घर के किसी कोने में अकेलेपन का शिकार हो रहें है. ऐसे में इनकी मानसिक-आर्थिक-सामाजिक समस्याएं बढ़ती जा रही है. महँगाई  के आगे पेंशन कम होती जा रही है. आयुष्मान योजना में बुजुर्गों को शामिल कर उनके स्वास्थ्य देखभाल के साथ बुजर्गों के लिए अलग से योजनाएं लाने की सख्त जरूरत है.)

हमारे देश में बुजुर्ग तेजी से बढ़ते जा रहे हैं, लेकिन उनके लिए उपलब्ध संसाधन कम होते जा रहें  हैं। ऐसे में हम सबकी जिम्मेवारी बनती है कि उन्हें  एक तरफ रखने के बजाय उनकी  शारीरिक और मानसिक देखभाल करने के लिए समुदायों के जीवन में एकीकृत किया जाना चाहिए, जहां वे सामाजिक परिस्थितियों को सुधारने में पर्याप्त योगदान दे सकते हैं। बुजुर्गों की 'समस्या' को 'समाधान' में बदलने का प्रयास करना बेहद जरूरी है।




 कोरोना काल में देश में बुजुर्ग जनसंख्या और स्वास्थ्य चुनौतियां उभर कर सामने आई है, भारत में उम्रदराज हो रही आबादी के स्वास्थ्य, आर्थिक तथा सामाजिक निर्धारकों और परिणामों की वैज्ञानिक जांच का देश में सबसे बड़ा व्यापक राष्ट्रीय सर्वे किया गया हैं. यह भारत का पहला तथा विश्व का अब तक का सबसे बड़ा सर्वे है जो सामाजिक, स्वास्थ्य तथा आर्थिक खुशहाली के पैमानों पर वृद्ध आबादी के लिए नीतियां और कार्यक्रम बनाने के उद्देश्य से लान्जिटूडनल डाटाबेस प्रदान करता है। इसमें देश तथा राज्यों का प्रतिनिधि सैम्पल सामाजिक आर्थिक परिदृश्य, व्यापक, प्रासंगिक फोकस, लान्जिटूडनल डिजाइन, डाटा संग्रह, गुणवत्ता नियंत्रण तथा भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस) के लिए कम्प्यूटर असिसटेड पर्सनल इंटरव्यूइंग (सीएपीआई) टेक्नॉलॉजी का उपयोग शामिल है।  इससे विभिन्न राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों में तालमेल होगा।

देश में जनसांख्यिकीय, सामाजिक-आर्थिक और अन्य प्रासंगिक क्षेत्रों में उभरते रुझानों को ध्यान में रखते हुए, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय वरिष्ठ नागरिकों के लिए एक राष्ट्रीय नीति बना रहा है, जिसमें वित्तीय और खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और पोषण जैसे मुद्दों को शामिल किया गया है,  विकसित होते भारत में भविष्य में  जनसंख्या स्वस्थ होगी और अधिक समय तक जीवित रहेगी। अनुसंधान इंगित करता है कि भारत की 12% आबादी 2030 तक 60 वर्ष की आयु और संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या निधि के अनुसार होगी; यह 2050 तक बढ़कर 19.4% होने की उम्मीद है।

60+ आयु वर्ग के पुरुषों की तुलना में अधिक महिलाएं होने जा रही हैं। लंबी उम्र बढ़ने से 80 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों की संख्या में वृद्धि हुई है, जो लगभग 1.1 करोड़ लोगों के लिए जिम्मेदार है। 100 वर्ष से अधिक आयु के लगभग 6 लाख लोगों के साथ, भारत में 2050 तक सबसे अधिक संख्या में लोग होंगे। 2011 में वरिष्ठ नागरिकों की संख्या 10.38 करोड़ से बढ़कर 2026 में 17.3 करोड़ और 2050 में 30 करोड़ हो गई। ऐसे में उनके कल्याण के लिए कार्यक्रमों की आवश्यकता बढ़ जाती है।

जीवन प्रत्याशा में वृद्धि, परिवारों के नाभिकीयकरण, उनके दिन-प्रतिदिन के रखरखाव और उम्र से संबंधित कठिनाइयों के लिए दूसरों पर निर्भरता; बुजुर्ग लोगों के जीवन के लिए एक कठिन चुनौती है। अधिक आर्थिक निर्भरता के कारण बुजुर्ग महिलाओं के लिए समस्या बढ़ जाती है। ग्रामीण क्षेत्रों में, जहाँ 70% बुजुर्ग रहते हैं, आर्थिक कारणों और चिकित्सा सेवाओं की खराब गुणवत्ता के कारण  गंभीर स्थिति की ओर जाता है, विशेष रूप से 80 वर्ष से अधिक आयु वालों के लिए। 5.1 करोड़ बुजुर्ग आबादी गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रही है और वरिष्ठ नागरिकों के खिलाफ बढ़ते अपराधों के कारण, बुजुर्ग लोगों की स्थिति दयनीय है।

भारत के वरिष्ठ नागरिकों का प्रतिशत हाल के वर्षों में बढ़ती दर से बढ़ रहा है और इस प्रवृत्ति के जारी रहने की संभावना है। स्टेट ऑफ वर्ल्ड पॉपुलेशन 2019 की रिपोर्ट के अनुसार भारत की छह प्रतिशत आबादी 65 वर्ष और उससे अधिक की थी। जीवन प्रत्याशा में वृद्धि, हालांकि वांछनीय है, लेकिन  इस से आधुनिक दुनिया के लिए नई चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। बढ़ती आबादी की समस्या आज कई देशों के लिए चिंता का विषय बन गई है। पेंशन और स्वास्थ्य सेवा के लिए प्रावधान बजट में कमी कर रहे हैं। 100 मिलियन से अधिक बुजुर्गों के घर और अगले तीन दशकों में संख्या में तीन गुना वृद्धि की उम्मीद के साथ भारत के लिए कई चुनौतियों का सामना करना होगा।

बदलते परिवेश में एकल परिवार बुजुर्गों को घर  की  दहलीज से दूर कर रहें है. बच्चों को दादी- नानी कि कहानी की बजाय पबजी अच्छा लगने लगा है, बुजुर्ग अपने बच्चों से बातों को तरस गए है. वो  घर के किसी कोने में अकेलेपन का शिकार हो रहें है. ऐसे में इनकी मानसिक-आर्थिक-सामाजिक समस्याएं बढ़ती जा रही है.महंगाई  के आगे पेंशन कम होती जा रही है. आयुष्मान योजना में बुजुर्गों को शामिल कर उनके स्वास्थ्य देखभाल के साथ बुजर्गों के लिए अलग से योजनाएं लाने की सख्त जरूरत है. ताकि हर घर में बुजुर्गों को आशीर्वाद के रूप में देखा जाये, बोझ नहीं। 
✍ - डॉo सत्यवान सौरभ,
रिसर्च स्कॉलर,कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,
-- 

शनिवार, 2 जनवरी 2021

 India needs new principles and capacity in the new year.


(China is a huge strategic threat to India, a growing and aggressive superpower and China's container with Pakistan is a threat to India's strategy. Given this, it would make sense for India to be prepared for the two-front threat.)


The year 2020 has been a challenging one on many fronts due to the ongoing coronavirus epidemic. Despite the epidemic, several important summits were held, at these summits, India played a leading role in discussing possible solutions to the problem. Not only on the epidemic front, but China has faced many challenges for India and even in the Indian Ocean. India took some bold steps to stand up. New Delhi was joined by many like-minded countries in trying to get away from China. The quad has been strengthened and Australia joined the Malabar practice. There was more than aired along with the year.




India has focused on being self-sufficient due to the epidemic. Such as running out of RCEP and the government's attempt to strengthen the domestic manufacturing sector. We have reached breaking with China after many years. The current focus is on countering economic collapse and China's aggression. The Indian Army has occupied strategic positions on the heights in Ladakh, showing China the "We are ready to face you".

 Medical diplomacy has brought new additions to India's foreign policy through vaccine production, the supply of medicines, PPE kits, and ventilators. To divert attention from China, relationships with our partner countries are being established through sustainable, flexible, and reliable supply chains. Pakistan has used terrorism as the cornerstone of its foreign policy against India to wage a proxy war using non-state actors. We have responded to terrorist launch pads inside Pakistan. Now India needs to constantly deal with the duel between China and Pakistan. India has used multilateral forums such as BRICS, SAARC, ASEAN, SCO to underline our global role. The Quad has emerged as a strong body to counter China's presence in the Indo-Pacific region.

During the last century, Indian strategic thinking was highly focused on Pakistan and security considerations emanating from there. However, India's military prudence in recent decades is firm on the view that the Sino-Pakistan military threat is a real possibility. Chinese infiltration in Ladakh in May 2020 and deadlock in negotiations have now made the Chinese military threat more clear and real. But some media reports had indicated that Pakistan had moved 20,000 troops to Gilgit-Baltistan, matching China's deployment in eastern Ladakh. Given this, it would make sense for India to be prepared for the two-front threat.

Sino-Pakistan military contacts are increasing. Sino-Pakistan relations are not new, but they still have more serious effects than ever before. China has always viewed Pakistan as a counter to India's influence in South Asia. China, through its checkbook diplomacy, wants to exercise this hegemony over South-Asian neighbors. In this quest, China would like to waste India's economic resources on border collisions. Thus China may have a strategy to reduce India's role in its neighborhood. In the last few years, relations between China and Pakistan have strengthened and there is great synergy in their strategic thinking. This can be understood from the fact that China has invested extensively in Pakistan through the China-Pakistan Economic Corridor. Also, military cooperation is increasing, with China accounting for 73% of Pakistan's total arms imports between 2015-2019.

As such, India will need close liaison with the political leadership to develop security principles. Our focus is very much on major platforms like aircraft, ships, and tanks and not enough on future technologies such as robotics, artificial intelligence, cyber, electronic warfare, etc. We have to strike the right balance based on a detailed assessment of the war-fighting strategies of China and Pakistan. Improve relations in South Asian neighbors: To begin with India, it will do a good job to improve relations with its neighbors, so that China and Pakistan do not attempt to involve and force India into the region. The government's current preoccupation with major powers in West Asia, including Iran, should be enhanced to ensure energy security, increase maritime cooperation, and increase goodwill in extended neighborhoods.

Reform in relations with Russia should ensure that its relations with Russia are not sacrificed in favor of United States relations with India so that Russia can play an important role in reducing the severity of a regional gang against India. A political outreach for Kashmir will have to work on a plan to go a long way towards that end to pacify the suffering citizens.




We need to fight with Pakistan and China while engaging in global institutions like one-minded countries to promote multilateralism that reforms the world order. India has shown its altruism to the world through its medical diplomacy. Also, India has come close to large countries such as Aus, Japan, and the USA to counter China's growing strength to maintain peaceful borders with China, India, and the Pacific region. China is a major strategic threat to India, a growing and aggressive superpower and China's containerization with Pakistan is a threat to India's strategy. In this context, certainly, the threat of war cannot be ignored and hence we need to develop both theory and capability to deal with this contingency.
✍- Dr. Satyavan Saurabh,
Research Scholar, poet, freelance journalist and columnist.

 भारत को नए साल में नए सिद्धांत और क्षमता की आवश्यकता है।


(चीन एक बढ़ती और आक्रामक महाशक्ति भारत के लिए बड़ा रणनीतिक खतरा है और पाकिस्तान के साथ चीन के कंटेनर भारत की रणनीति के लिए खतरा है। इसे देखते हुए, भारत के लिए दो-मोर्चे के खतरे के लिए तैयार रहना समझदारी होगी। )


वर्ष 2020 तक चल रहे कोरोनावायरस महामारी के कारण कई मोर्चों पर एक चुनौतीपूर्ण रहा है।  महामारी के बावजूद, कई महत्वपूर्ण शिखर आयोजित किए गए, इन शिखर सम्मेलनों में, भारत ने समस्या के संभावित समाधानों पर चर्चा करने में अग्रणी भूमिका निभाई। न केवल महामारी के मोर्चे पर, बल्कि चीन ने भारत के लिए और यहां तक कि हिंद महासागर में कई चुनौतियों का सामना किया।  भारत ने  खड़े होकर कुछ साहसिक कदम उठाए। नई दिल्ली को कई समान विचारधारा वाले देशों ने चीन से दूर जाने की कोशिश में शामिल किया। क्वाड को मजबूत किया गया है और ऑस्ट्रेलिया मालाबार अभ्यास में शामिल हुआ। और भी बहुत कुछ था जो वर्ष के साथ-साथ प्रसारित हुआ।

महामारी के कारण भारत ने आत्मानिर्भर होने में ध्यान केंद्रित किया है। जैसे-आरसीईपी से बाहर चलना और सरकार द्वारा घरेलू विनिर्माण क्षेत्र को मजबूत करने की कोशिश। हम कई वर्षों के बाद चीन के साथ ब्रेकिंग तक पहुंच गए हैं। वर्तमान ध्यान आर्थिक पतन और चीन की आक्रामकता का सामना करने पर है। भारतीय सेना ने चीन को "हम आपका सामना करने के लिए तैयार हैं"  का जज्जबा दिखाते हुए लद्दाख में ऊंचाइयों पर रणनीतिक पदों पर कब्जा कर लिया है।



मेडिकल डिप्लोमेसी से वैक्सीन का उत्पादन, दवाओं की आपूर्ति, पीपीई किट और वेंटिलेटर द्वारा भारत की विदेश नीति के लिए नया अतिरिक्त फायदा हुआ है। चीन से ध्यान हटाने के लिए, स्थायी, लचीला और भरोसेमंद आपूर्ति श्रृंखलाओं से हमारे सहयोगी देशों से सम्बन्ध स्थापित किया जा रहा है। पाकिस्तान ने गैर-राज्य अभिनेताओं का उपयोग करके छद्म युद्ध छेड़ने के लिए भारत के खिलाफ अपनी विदेश नीति की आधारशिला के रूप में आतंकवाद का इस्तेमाल किया है। हमने पाक के अंदर आतंकी लॉन्च पैड्स का जवाब दिया है। अब भारत को लगातार चीन और पाक के द्वंद्व से निपटने की जरूरत है। भारत ने हमारी वैश्विक भूमिका को रेखांकित करने के लिए ब्रिक्स, सार्क, आसियान, एससीओ जैसे बहुपक्षीय मंचों का उपयोग किया है।  भारत-प्रशांत क्षेत्र में चीन की उपस्थिति का मुकाबला करने के लिए क्वाड एक मजबूत निकाय के रूप में उभरा है।

पिछली शताब्दी के दौरान, भारतीय रणनीतिक सोच पाकिस्तान और वहां से निकलने वाले सुरक्षा विचारों पर अत्यधिक केंद्रित थी। हालांकि, हाल के दशकों में भारत की सैन्य समझदारी इस दृष्टिकोण पर दृढ़ है कि चीन-पाकिस्तान सैन्य खतरा एक वास्तविक संभावना है। मई 2020 में लद्दाख में चीनी घुसपैठ और बातचीत में गतिरोध ने अब चीनी सैन्य खतरे को और अधिक स्पष्ट और वास्तविक बना दिया है। लेकिन कुछ मीडिया रिपोर्टों ने संकेत दिया था कि पूर्वी लद्दाख में चीन की तैनाती से मेल खाते हुए पाकिस्तान ने गिलगित-बाल्टिस्तान में 20,000 सैनिकों को स्थानांतरित कर दिया था। इसे देखते हुए, भारत के लिए दो-मोर्चे के खतरे के लिए तैयार रहना समझदारी होगी। चीन-पाकिस्तान सैन्य संपर्क बढ़ रहा है चीन-पाकिस्तान संबंध कोई नई बात नहीं है, लेकिन इसके पहले से कहीं अधिक गंभीर प्रभाव आज भी हैं। चीन ने हमेशा पाकिस्तान को दक्षिण एशिया में भारत के प्रभाव के लिए एक काउंटर के रूप में देखा है। चीन अपनी चेकबुक कूटनीति के माध्यम से, दक्षिण-एशियाई पड़ोसियों पर इस आधिपत्य का प्रयोग करना चाहता है। इस खोज में, चीन सीमा टकराव पर भारत के आर्थिक संसाधनों को खत्म करना चाहेगा। इस प्रकार चीन द्वारा अपने पड़ोस में भारत की भूमिका को कम करने के लिए एक रणनीति हो सकती है। पिछले कुछ वर्षों में, चीन और पाकिस्तान देशों के बीच संबंध मजबूत हुए हैं और उनकी रणनीतिक सोच में बहुत बड़ा तालमेल है। इसे इस तथ्य से समझा जा सकता है कि चीन ने चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के माध्यम से पाकिस्तान में बड़े पैमाने पर निवेश किया है। इसके अलावा, सैन्य सहयोग बढ़ रहा है, चीन के साथ 2015-2019 के बीच पाकिस्तान के कुल हथियारों के आयात का 73% हिस्सा है।




ऐसे में भारत को सुरक्षा सिद्धांत  विकसित करने के लिए राजनीतिक नेतृत्व के साथ घनिष्ठ संपर्क की आवश्यकता होगी। हमारा ध्यान  विमान, जहाज और टैंक जैसे प्रमुख प्लेटफार्मों पर बहुत अधिक ध्यान केंद्रित है और भविष्य की तकनीकों जैसे कि रोबोटिक्स, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, साइबर, इलेक्ट्रॉनिक युद्ध आदि पर पर्याप्त नहीं है। हमें चीन और पाकिस्तान की युद्ध-लड़ने की रणनीतियों के विस्तृत आकलन के आधार पर सही संतुलन बनाना होगा। दक्षिण एशियाई पड़ोसियों में संबंधों में सुधार: भारत के साथ शुरू करने के लिए, अपने पड़ोसियों के साथ संबंधों को बेहतर बनाने के लिए अच्छा काम करेगा, ताकि चीन और पाकिस्तान इस क्षेत्र में भारत को शामिल करने और विवश करने का प्रयास न करें। ईरान सहित पश्चिम एशिया में प्रमुख शक्तियों की सरकार की वर्तमान व्यस्तता को बढ़ाया जाना चाहिए ताकि ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित हो, समुद्री सहयोग बढ़े और विस्तारित पड़ोस में सद्भावना बढ़े। रूस के साथ संबंध में सुधार सुनिश्चित करना चाहिए कि भारत के साथ संयुक्त राज्य अमेरिका के संबंधों के पक्ष में रूस के साथ अपने संबंधों का बलिदान नहीं हो, ताकि रूस भारत के खिलाफ एक क्षेत्रीय गिरोह की गंभीरता को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सके। कश्मीर के लिए एक राजनीतिक आउटरीच पीड़ित नागरिकों को शांत करने के उद्देश्य से उस छोर की ओर एक लंबा रास्ता तय करने की योजना पर काम करना होगा।

हमें विश्व व्यवस्था में सुधार वाले बहुपक्षवाद को बढ़ावा देने के लिए वैश्विक संस्थानों में एक सोच वाले देशों की तरह संलग्न रहते हुए पाक और चीन से लड़ने की जरूरत है। भारत ने अपनी चिकित्सा कूटनीति द्वारा दुनिया के लिए अपनी परोपकारिता दिखाई है। इसके अलावा चीन, भारत और प्रशांत क्षेत्र के साथ शांतिपूर्ण सीमाओं को बनाए रखने के लिए चीन की बढ़ती ताकत का मुकाबला करने के लिए भारत, जापान और यूएसए जैसे बड़े देशों के करीब आया है। चीन एक बढ़ती और आक्रामक महाशक्ति भारत के लिए बड़ा रणनीतिक खतरा है और पाकिस्तान के साथ चीन के कंटेनर भारत की रणनीति के लिए खतरा है।  इस संदर्भ में, यह निश्चित है कि युद्ध के खतरे को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है और इसलिए हमें इस आकस्मिकता से निपटने के लिए सिद्धांत और क्षमता दोनों विकसित करने की आवश्यकता है।

✍ - डॉo सत्यवान सौरभ,
रिसर्च स्कॉलर,कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,
-- 

मंगलवार, 29 दिसंबर 2020

 बुरे समय की आंधियां !

●●●
तेज प्रभाकर का ढले, जब आती है शाम !
रहा सिकन्दर का कहाँ, सदा एक सा नाम !!
●●●
उगते सूरज को करे, दुनिया सदा सलाम !
नया कलेंडर साल का, लगता जैसे राम !!
●●●
तिनका-तिनका उड़ चले, छप्पर का अभिमान !
बुरे समय की आंधियां, तोड़े सभी गुमान !!
●●●
तिथियां बदले पल बदले, बदलेंगे सब ढंग !
खो जायेगा एक दिन, सौरभ तन का रंग !!
●●●
पाकर भी कुछ ना मिले, होकर जिम्मेवार !
कितना धोखेबाज है, सौरभ ये किरदार !!
●●●
प्रेम दिया या दर्द हो, सबका है आभार !
जीवन पथ पर है तभी, मिला मुझे विस्तार !!
●●●
हम पत्तों को सींचते, पर जड़ है बीमार !
सौरभ कैसे हो बता, ऐसे वृक्ष सुधार !!
●●●
✍
- डॉo सत्यवान सौरभ,
रिसर्च स्कॉलर,कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,
Image may contain: 1 person, text that says "समय की आंधियां! तेज रहा सिकन्दर ढले, जब आतीहै शाम कहाँ, सदा एक सा नाम! उगते सूरज करे, दुनिया सदा सलाम! नया कलेंडर साल का, लगता जैसे राम!! तिनका-तिनकाउड चले, छप्पर का अभिमान! बुरे समय की आंधियां, तोड़े सभी गुमान!! बदले पल बदले, खो जायेगा एक दिन, सौरभतनकारंग!! पाकर भी कुछ नामिले, जिम्मेवार! कितना धोखेबाजहै, सौरभ किरदार!! प्रेम पथ सबकाहै आभार! तभी, मिला मुझे विस्तार!! पत्तों को सीचते, पर बीमार! सौरभ कैसे हो बता, ऐसे वृक्ष सुधार!! डॉo सत्यवान सौरभ, कवि, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट, 333, परीवाटिका, कौशल्या भवन, बड़वा (सिवानी) भिवानी, हरियाणा- 127045 मोबाइल:9466526148,01255281381"
Like
Comment
Share

 ख़बरों के पीछे दौड़ती पत्रकारिता को थोड़ी रेड  लाइट की जरूरत है।


( किसी भी मीडिया संस्थान की पहली खबर से अगर लोगों के चेहरे पर मुस्कान न आये तो वह कैसी पत्रकारिता ? आज देश भर के चैनलों और अख़बारों में खबर जहां जल्दी पहुंचाने पर जोर है, वहीं समाचार में वस्‍तुनिष्‍ठता, निष्पक्षता और सटीकता बनाए रखना भी बेहद जरूरी है। फेसबुक, व्हाट्सएप और ट्विटर जैसे सोशल नेटवर्क लोगों के लिए खबर का स्रोत बन गए हैं, लेकिन इनका कोई पत्रकारिता मानदंड नहीं है। )
आज  के दौर में सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव के बीच मीडिया के लिए विश्वसनियता की अहमियत पहले से ज्यादा बढ़ गई है। आज देश भर के चैनलों और अख़बारों में खबर जहां जल्दी पहुंचाने पर जोर है, वहीं समाचार में वस्‍तुनिष्‍ठता, निष्पक्षता और सटीकता बनाए रखना भी बेहद जरूरी है। इंटरनेट और सूचना के आधिकार (आर.टी.आई.) ने आज की पत्रकारिता को बहुआयामी और अनंत बना दिया है। आज कोई भी जानकारी पलक झपकते उपलब्ध की और कराई जा सकती है। मीडिया आज काफी सशक्त, स्वतंत्र और प्रभावकारी हो गया है।आज के युग में पत्रकारिता के भी अनेक माध्यम हो गये हैं; जैसे - अखबार, पत्रिकायें, रेडियो, दूरदर्शन, वेब-पत्रकारिता और सोशल मीडिया आदि।



बदलते वक्त के साथ बाजारवाद और पत्रकारिता के अंतर्संबंधों ने पत्रकारिता की विषय-वस्तु तथा प्रस्तुति शैली में व्यापक परिवर्तन किए है। पत्रकारिता की पहुँच और आभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का व्यापक इस्तेमाल आमतौर पर सामाजिक सरोकारों और भलाई से ही जुड़ा है, किंतु अब इसका दुरूपयोग भी होने लगा है। फेसबुक, व्हाट्सएप और ट्विटर जैसे सोशल नेटवर्क लोगों के लिए खबर का स्रोत बन गए हैं, लेकिन इनका कोई पत्रकारिता मानदंड नहीं है। इन कंपनियों द्वारा उपयोग किए जाने वाले अत्यधिक लक्षित एल्गोरिदम द्वारा गलत सूचना या समाचार के प्रसार को बहुत बढ़ाया गया है। वे उन सूचनाओं के साथ उपयोगकर्ताओं पर बमबारी करने की संभावना रखते हैं।
वे उन सूचनाओं के साथ उपयोगकर्ताओं पर बमबारी करने की संभावना रखते हैं जो कि एल्गोरिथ्म को क्या लगता है कि खोजकर्ता को क्या पता होना चाहिए, यह सुदृढ़ करने के लिए कार्य करता है। जैसा कि वे खुद को इंटरनेट से परिचित करते हैं, नए ऑनलाइन भारतीय एल्गोरिदम के शिकार होने के लिए बाध्य हैं जो सामाजिक नेटवर्क फर्मों का उपयोग करते हैं। नए ऑनलाइन भारतीय एल्गोरिदम के शिकार होने के लिए बाध्य हैं जो सामाजिक नेटवर्क फर्मों का उपयोग करते हैं।
 संचार क्रांति तथा सूचना के आधिकार के अलावा आर्थिक उदारीकरण ने पत्रकारिता के चेहरे को पूरी तरह बदलकर रख दिया है। विज्ञापनों से होने वाली अथाह कमाई ने पत्रकारिता को काफी हद तक व्यावसायिक बना दिया है। मीडिया का लक्ष्य आज आधिक से आधिक कमाई का हो चला है। मीडिया के इसी व्यावसायिक दृष्टिकोन का नतीजा है कि उसका ध्यान सामाजिक सरोकारों से कहीं भटक गया है। मुद्दों पर आधारित पत्रकारिता के बजाय आज इन्फोटेमेंट ही मीडिया की सुर्खियों में रहता है।
इंटरनेट की व्यापकता और उस तक सार्वजनिक पहुँच के कारण उसका दुष्प्रयोग भी होने लगा है। इंटरनेट के उपयोगकर्ता निजी भड़ास निकालने तथा आपत्तिजनक प्रलाप करने के लिए इस उपयोगी साधन का गलत इस्तेमाल करने लगे हैं। यही कारण है कि यदा-कदा मीडिया के इन बहुपयोगी साधनों पर अंकुश लगाने की बहस भी छिड़ जाती है। गनीमत है कि यह बहस सुझावों और शिकायतों तक ही सीमित रहती है। उस पर अमल की नौबत नहीं आने पाती। लोकतंत्र के हित में यही है कि जहाँ तक हो सके पत्रकारिता हो स्वतंत्र और निर्बाध रहने दिया जाए और पत्रकारिता का अपना हित इसमें है कि वह आभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उपयोग समाज और सामाजिक सरोकारों के प्रति अपने दायित्वों के ईमानदार निवर्हन के लिए करती रहे।
 हाल ही में उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने कहा कि मीडिया को अपनी जिम्मेदारी समझाते हुए मीडिया कर्मियों से आग्रह किया कि उन्हें पत्रकारिता के नियमों और सिद्धांतों का पालन करना चाहिए और फर्जी और गलत खबरों के प्रसार को रोकना चाहिए। साथ ही लोगों तक सही सटीक और सरल भाषा में खबरें पहुंचानी चाहिए। उन्होंने कहा कि हम इस समय बदलाव और सुधारों की दिशा में आगे बढ़ रहे है।  इन सुधारों को आगे ले जाने के लिए सटीक जानकारी और प्रक्रिया जरूरी है। वक्त के साथ विकास को बढ़ावा देने और समाज की बेहतरी के लिए बदलाव लाने वाले कारकों पर मीडिया को अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए और ऐसी खबरों को तव्वजो देनी चाहिए.
 वेंकैया नायडू ने तकनीक आधारित सोशल मीडिया दिग्गजों और राजस्व उत्पन्न करने के लिए संघर्ष कर रहे पारंपरिक मीडिया के बीच एक राजस्व साझाकरण मॉडल को कारगर बनाने के लिए प्रभावी दिशानिर्देशों और कानूनों की आवश्यकता को रेखांकित किया। हालांकि पारंपरिक प्रिंट मीडिया ईमानदारी से ऑनलाइन होकर तकनीकी व्यवधान को अपना रहा है, यह एक व्यवहार्य राजस्व मॉडल के साथ आने के लिए संघर्ष कर रहा है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि कुछ देश प्रिंट मीडिया के लिए सोशल मीडिया दिग्गजों द्वारा राजस्व साझाकरण सुनिश्चित करने के लिए उपाय कर रहे हैं । नायडू ने जोर देकर कहा कि हमें इस समस्या पर भी गंभीरता से विचार करने और प्रभावी दिशानिर्देशों और कानूनों के साथ सहमति बनाने की जरूरत है ताकि प्रिंट मीडिया को प्रौद्योगिकी दिग्गजों के बड़े राजस्व से अपना हिस्सा मिल सके।
 सच में फ़ेक न्यूज़ मुक्त भाषण देश के नागरिकों की पसंद को प्रभावित करता है? मुख्य रूप से मीडिया कवरेज को एक संतुलित और तटस्थ दृष्टिकोण पर प्रहार करना पड़ता है। मगर फेक न्यूज असत्य सूचना है जिसे समाचार के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। इसका उद्देश्य अक्सर किसी व्यक्ति या संस्था की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाना या विज्ञापन राजस्व के माध्यम से पैसा कमाना होता है। थोड़ा प्रिंट को छोड़कर  डिजिटल मीडिया या सोशल मीडिया में नकली समाचारों का प्रचलन बढ़ गया है। भारत में, नकली समाचारों का प्रसार ज्यादातर राजनीतिक और धार्मिक मामलों के संबंध में हुआ है।हालांकि, कोविद -19 महामारी से संबंधित गलत सूचना भी व्यापक रूप से प्रसारित की गई थी। देश में सोशल मीडिया के माध्यम से फैलने वाली नकली खबरें एक गंभीर समस्या बन गई हैं।
हालांकि सरकार द्वारा सोशल मीडिया की अफवाहों को फैलने से रोकने के लिए इंटरनेट शटडाउन का उपयोग अक्सर किया जाता है। सरकार जनता को नकली समाचारों के बारे में अधिक जागरूक बनाने के लिए अधिक सार्वजनिक-शिक्षा पहल करने की योजना भी बना रही है। फैक्ट-चेकिंग ने फर्जी खबरों का मुकाबला करने के लिए भारत में तथ्य-जांच वेबसाइटों के निर्माण को बढ़ावा दिया है। लेकिन समाज के इस चौथे स्तम्भ की भी समझना चाहिए कि सामाजिक सरोकारों तथा सार्वजनिक हित से जुड़कर ही पत्रकारिता सार्थक बनती है। सामाजिक सरोकारों को व्यवस्था की दहलीज तक पहुँचाने और प्रशासन की जनहितकारी नीतियों तथा योजनाओं  को समाज के सबसे निचले तबके तक ले जाने के दायित्व का निर्वाह ही सार्थक पत्रकारिता है।
पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा पाया (स्तम्भ) है। कोई भी लोकतंत्र तभी सशक्त है जब पत्रकारिता सामाजिक सरोकारों के प्रति अपनी सार्थक भूमिका निभाती रहे। सार्थक पत्रकारिता का उद्देश्य ही यह होना चाहिए कि वह प्रशासन और समाज के बीच एक महत्त्वपूर्ण कड़ी की भूमिका अपनाये। अगर किसी भी मीडिया संस्थान की पहली खबर से अगर लोगों के चेहरे पर मुस्कान न आये तो वह कैसी पत्रकारिता ? ख़बरों के पीछे दौड़ती पत्रकारिता को भी थोड़े समय रेड लाइट की जरूरत है ताकि वो सुकून से आगे बढ़ सके और लोगों को सही रास्ता दिखा सके।
✍ - डॉo सत्यवान सौरभ,
रिसर्च स्कॉलर,कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,
x