जहर आज भी पी रहा, बनता जो सुकरात ! कौन कहे है सत्य के, बदल गए हालात !! ✍ - डॉo सत्यवान सौरभ,
शुक्रवार, 5 जून 2015
हरियाली को खा रहे,पत्थर होते गाँव ! बूढा बरगद है कहाँ,गायब पीपल छाँव !! ------------------------------------- पशु-पक्षी सब ढूंढते,रहने को आवास !! हरियाली ने ले लिया,जंगल से सन्यास! --------------------------------- झुरमुट पेड़ों के गए,है कंकरीट की भीड़ ! उड़ते पंछी खोजते,रहने को अब नीड़ !! -------------------------------------- आँखों को अब है नहीं,रंगो की पहचान ! बिन पत्तों औ फूल के,घर सब रेगिस्तान !! ------------------------------------- गुलदानों में है सजे,अब कागज़ के फूल ! खुश्बू के बदले भरी, है अंदर तक धूल!!
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बेहतरीन लिखा सौरभ जी शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (06-06-2015) को "विश्व पर्यावरण दिवस" (चर्चा अंक-1998) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
विश्व पर्यावरण दिवस की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक