जहर आज भी पी रहा, बनता जो सुकरात ! कौन कहे है सत्य के, बदल गए हालात !! ✍ - डॉo सत्यवान सौरभ,
शुक्रवार, 5 जून 2015
हरियाली को खा रहे,पत्थर होते गाँव ! बूढा बरगद है कहाँ,गायब पीपल छाँव !! ------------------------------------- पशु-पक्षी सब ढूंढते,रहने को आवास !! हरियाली ने ले लिया,जंगल से सन्यास! --------------------------------- झुरमुट पेड़ों के गए,है कंकरीट की भीड़ ! उड़ते पंछी खोजते,रहने को अब नीड़ !! -------------------------------------- आँखों को अब है नहीं,रंगो की पहचान ! बिन पत्तों औ फूल के,घर सब रेगिस्तान !! ------------------------------------- गुलदानों में है सजे,अब कागज़ के फूल ! खुश्बू के बदले भरी, है अंदर तक धूल!!
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