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-----सत्यवान सौरभ, कोरोना महामारी संकट दुनिया भर की महिलाओं और बच्चों पर संभावित दूरगामी, दीर्घकालिक नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है। ये विशेष रूप से बच्चों के लिए विनाशकारी होने की संभावना रखता है, भले ही उनमें अन्य समूहों की तुलना में कम गंभीर लक्षण और मृत्यु दर हों। आज 1.5 बिलियन से अधिक छात्र स्कूल से बाहर हैं। व्यापक नौकरी और आय में कमी और परिवारों में आर्थिक असुरक्षा से बाल श्रम, यौन शोषण और बाल विवाह की दर में वृद्धि होने की संभावना है। परिवारों में तनाव हैं, विशेष रूप से तालाबंदी के कारण घरेलू हिंसा की घटनाओं में वृद्धि के मामले बढ़ रहे हैं।
अनुमानित 42-66 मिलियन बच्चे इस वर्ष संकट के परिणामस्वरूप अत्यधिक गरीबी में गिर सकते हैं, 2019 में पहले से ही दुनिया के 386 मिलियन बच्चे अत्यधिक गरीबी से जूझ रहे हैं। 188 देशों ने 1.5 अरब से अधिक बच्चों और युवाओं को प्रभावित करते हुए देशव्यापी स्कूल बंद कर दिए हैं। आज की युवा पीढ़ी के लिए, और उनकी मानव पूंजी के विकास के लिए सीखने में संभावित नुकसान, भविष्य के लिए कठिन राह हैं। दो-तिहाई से अधिक देशों ने एक राष्ट्रीय दूरी सीखने का मंच पेश किया है, लेकिन कम आय वाले देशों में यह हिस्सा केवल 30 प्रतिशत है। इस संकट से पहले, दुनिया के लगभग एक तिहाई युवा पहले ही डिजिटल रूप से बाहर कर दिए गए थे और महामारी संकट ने अब पारम्परिक तौर से भी बाहर कर दिया।
वैश्विक आर्थिक मंदी के परिणामस्वरूप परिवारों द्वारा अनुभव की गई आर्थिक कठिनाई 2020 में हजारों बच्चों की अतिरिक्त मौत का कारण बन सकती है, जो एक ही वर्ष के भीतर शिशु मृत्यु दर को कम करने में पिछले 2 से 3 वर्षों की प्रगति को उलट देती है। और यह चिंताजनक आंकड़ा संकट के कारण बाधित सेवाओं को भी ध्यान में नहीं रखता, यह केवल अर्थव्यवस्थाओं और मृत्यु दर के बीच के वर्तमान संबंध को दर्शाता है, कुपोषण बढ़ने की आशंका 143 देशों के 368.5 मिलियन बच्चों में है, जो सामान्य रूप से दैनिक पोषण के एक विश्वसनीय स्रोत के लिए स्कूल भोजन पर भरोसा करते हैं, अब उन्हें अन्य स्रोतों को देखना होगा। बाल मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण के लिए जोखिम भी काफी हैं। शरणार्थी और आंतरिक रूप से विस्थापित बच्चों में विशेष रूप से असुरक्षित होने का गंभीर खतरा हैं।
लॉकडाउन और आश्रय के उपाय बच्चों की हिंसा और दुर्व्यवहार के गवाह होने के जोखिम के साथ आते हैं। इस संघर्ष में शरणार्थी बस्तियों जैसी विषम और भीड़ वाली परिस्थितियों में रहने वाले बच्चों को भी काफी जोखिम है। दूरस्थ शिक्षा के लिए ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म पर बच्चों की निर्भरता ने अनुचित सामग्री और ऑनलाइन शिकारियों के संपर्क में आने के जोखिम को भी बढ़ा दिया है, गत रोज पहले चाइल्डलाइन इंडिया का यह खुलासा बेहद चिंताजनक है कि देश भर में लागू 21 दिन के लॉकडाउन के दौरान बच्चों के खिलाफ उत्पीड़न और हिंसा के मामलों में वृद्धि हुई है।
चाइल्डलाइन इंडिया की मानें तो विगत 11 दिनों के लॉकडाउन के दरम्यान उसकी हेल्पलाइन पर बच्चों के उत्पीड़न से संबंधित 92 हजार से अधिक शिकायतें प्राप्त हुई हैं।
उसके आंकड़ों के मुताबिक विगत 11 दिनों के दरम्यान पूरे देश से तकरीबन 3.07 लाख शिकायतें मिली जिनमें से 30 प्रतिशत बच्चों के खिलाफ उत्पीड़न व हिंसा को लेकर है। गौरतलब है कि ये आंकड़े जिलों की बाल संरक्षण इकाईयों की कार्यशाला के दौरान साझा किए गए हैं। दूसरी ओर राष्ट्रीय महिला आयोग द्वारा भी कहा गया है कि लॉकडाउन के दौरान घरेलू हिंसा को लेकर 24 मार्च से लेकर एक अप्रैल के बीच 257 शिकायतें मिली हैं। इन दोनों संस्थाओं के आंकड़ों से स्पष्ट है कि संकट की इस संकट की घड़ी में भी महिलाओं और बच्चों पर होने वाले अत्याचारों में कमी नहीं आयी हैं
ऐसी महामारी के प्रकोप से आये लॉक डाउन से लड़कियों और युवा महिलाओं के कर्तव्यों में वृद्धि हुई है, जो बुजुर्ग और बीमार परिवार के सदस्यों की देखभाल करती हैं, साथ ही साथ उन भाई-बहनों के लिए भी जो स्कूल से बाहर हैं, बुरे दिन शुरू हो गए है, वो क्या करें असमंजस में है। लड़कियों और विशेष रूप से हाशिए के समुदायों विकलांग लोगों के लिए, विशेष रूप से इसके प्रभाव घातक है। लड़कियों और महिलाओं को घर में हिंसा के खतरे बढ़ रहे हैं क्योंकि कोरोना सुरक्षा नियम उन्हें आवश्यक सुरक्षा सेवाओं और सामाजिक नेटवर्क से दूर कर रहे हैं।
इस प्रकोप के कारण परिवारों पर आर्थिक तनाव बच्चों, और विशेष रूप से लड़कियों के शोषण, बाल श्रम और लिंग आधारित हिंसा के अधिक जोखिम में बढ़ोतरी हुई है,
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग भी स्वीकार चुका है कि उसके पास बाल श्रम के हजारों मामले दर्ज हैं। आंकड़े बताते हैं कि भारत में 14 साल से कम उम्र के सबसे ज्यादा बाल श्रमिकों वाला देश बन चुका है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के मुताबिक दुनिया भर में तकरीबन बीस करोड़ से अधिक बच्चे जोखिम भरे कार्य करते हैं और उनमें सर्वाधिक संख्या भारतीय बच्चों की ही है। जब लॉकडाउन में बच्चों का शोषण थम नहीं रहा है तो आम दिनों में उनके साथ क्या होता होगा इसे आसानी से समझा जा सकता है।
वैश्विक लॉकडाउन लड़कियों की स्वायत्तता को बंद कर देते हैं, उन व्यवहारों और प्रथाओं को सुदृढ़ करते हैं जो लड़कियों को द्वितीय श्रेणी का मानते हैं और उन्हें वापस पकड़ते हैं। ऐसे समय लिंग आधारित हिंसा से सभी बच्चों, और लड़कियों और महिलाओं की कठोर सुरक्षा को सभी नीतियों, सूचना, मार्गदर्शन में प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
अतीत की महामारियों से होने वाले साक्ष्य इंगित करते हैं कि स्वास्थ्य संबंधी संसाधनों को अक्सर नियमित स्वास्थ्य सेवाओं से हटा दिया जाता है। यह आगे कई लड़कियों और युवा महिलाओं की यौन और प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं के साथ-साथ मातृ, नव-जन्म और बाल स्वास्थ्य सेवाओं तक पहले से ही सीमित पहुंच को कम करता है। यौन और प्रजनन स्वास्थ्य सूचना सेवाओं तक पहुँचने में चुनौतियाँ - जिनमें गर्भनिरोधक, सुरक्षित गर्भपात और एचआईवी दवाएं शामिल हैं- लड़कियों और महिलाओं के स्वास्थ्य और जीवन के जोखिमों को बढ़ाएँगी।
प्रकोप के दौरान आर्थिक चुनौतियां युवा महिलाओं के कार्य और व्यावसायिक गतिविधियो के लिए एक गंभीर खतरा पैदा करती हैं और उनके शोषण या दुरुपयोग के जोखिम को बढ़ाती हैं। गंभीर आर्थिक आघात का सामना करने वाली लड़कियों और युवा महिलाओं को अपने आर्थिक अस्तित्व के लिए उच्च जोखिम वाले काम करने की संभावना के रास्तें खुल जातें है। ऐसे समय युवा महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण की रक्षा और उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी का हमें समर्थन करना चाहिए।
यह एक अभूतपूर्व संकट है और यह बच्चों और महिलाओं के अधिकारों और सुरक्षा और विकास के लिए अभूतपूर्व जोखिम प्रस्तुत करता है। इन जोखिमों को केवल अभूतपूर्व अंतरराष्ट्रीय एकजुटता के माध्यम से कम किया जा सकता है। हमें जरूरत है तीन मोर्चों-सूचना, एकजुटता और जिम्मेदारी पर मिलकर काम करने की है। यह न केवल इस महामारी को हराने का मौका है, बल्कि ये भी देखना है कि हम किस तरह बच्चों का पोषण करते हैं और युवा पीढ़ी और महिलाओं में निवेश करते हैं। लेकिन हमें अभी कार्य करना है, हमें निर्णायक रूप से, और बहुत बड़े स्तर पर कार्य करना है। यह एक क्रमिक मुद्दा नहीं है, यह दुनिया के बच्चों और महिलाओं के साथ-साथ दुनिया के भविष्य के लिए एक स्पष्ट आह्वान है।
अमरीका और चीन जैसी महाशक्तियों ने इस वायरस के सामने घुटने टेक दिए हैं। सभ्यताओं पर संकट खड़ा हो गया है। संस्कृतियों पर ग्रहण लग गया है। इंसानों में मानवीयता का संकट खड़ा हो गया है। समाज के एक वर्ग के सामने भुखमरी की स्थिति पैदा हो गई है। आनेवाला वक्त भयावहता की घंटी बजा रहा है लेकिन हम आंतरिक साहस को मजबूत कर इस लड़ाई को जीत सकते हैं। दुनिया में ऐसा कोई कार्य नहीं है जिसे इंसान सम्भव न बना पाए।
---------सत्यवान सौरभ,
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