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मंगलवार, 29 दिसंबर 2020

 बुरे समय की आंधियां !

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तेज प्रभाकर का ढले, जब आती है शाम !
रहा सिकन्दर का कहाँ, सदा एक सा नाम !!
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उगते सूरज को करे, दुनिया सदा सलाम !
नया कलेंडर साल का, लगता जैसे राम !!
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तिनका-तिनका उड़ चले, छप्पर का अभिमान !
बुरे समय की आंधियां, तोड़े सभी गुमान !!
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तिथियां बदले पल बदले, बदलेंगे सब ढंग !
खो जायेगा एक दिन, सौरभ तन का रंग !!
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पाकर भी कुछ ना मिले, होकर जिम्मेवार !
कितना धोखेबाज है, सौरभ ये किरदार !!
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प्रेम दिया या दर्द हो, सबका है आभार !
जीवन पथ पर है तभी, मिला मुझे विस्तार !!
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हम पत्तों को सींचते, पर जड़ है बीमार !
सौरभ कैसे हो बता, ऐसे वृक्ष सुधार !!
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✍
- डॉo सत्यवान सौरभ,
रिसर्च स्कॉलर,कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,
Image may contain: 1 person, text that says "समय की आंधियां! तेज रहा सिकन्दर ढले, जब आतीहै शाम कहाँ, सदा एक सा नाम! उगते सूरज करे, दुनिया सदा सलाम! नया कलेंडर साल का, लगता जैसे राम!! तिनका-तिनकाउड चले, छप्पर का अभिमान! बुरे समय की आंधियां, तोड़े सभी गुमान!! बदले पल बदले, खो जायेगा एक दिन, सौरभतनकारंग!! पाकर भी कुछ नामिले, जिम्मेवार! कितना धोखेबाजहै, सौरभ किरदार!! प्रेम पथ सबकाहै आभार! तभी, मिला मुझे विस्तार!! पत्तों को सीचते, पर बीमार! सौरभ कैसे हो बता, ऐसे वृक्ष सुधार!! डॉo सत्यवान सौरभ, कवि, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट, 333, परीवाटिका, कौशल्या भवन, बड़वा (सिवानी) भिवानी, हरियाणा- 127045 मोबाइल:9466526148,01255281381"
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 ख़बरों के पीछे दौड़ती पत्रकारिता को थोड़ी रेड  लाइट की जरूरत है।


( किसी भी मीडिया संस्थान की पहली खबर से अगर लोगों के चेहरे पर मुस्कान न आये तो वह कैसी पत्रकारिता ? आज देश भर के चैनलों और अख़बारों में खबर जहां जल्दी पहुंचाने पर जोर है, वहीं समाचार में वस्‍तुनिष्‍ठता, निष्पक्षता और सटीकता बनाए रखना भी बेहद जरूरी है। फेसबुक, व्हाट्सएप और ट्विटर जैसे सोशल नेटवर्क लोगों के लिए खबर का स्रोत बन गए हैं, लेकिन इनका कोई पत्रकारिता मानदंड नहीं है। )
आज  के दौर में सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव के बीच मीडिया के लिए विश्वसनियता की अहमियत पहले से ज्यादा बढ़ गई है। आज देश भर के चैनलों और अख़बारों में खबर जहां जल्दी पहुंचाने पर जोर है, वहीं समाचार में वस्‍तुनिष्‍ठता, निष्पक्षता और सटीकता बनाए रखना भी बेहद जरूरी है। इंटरनेट और सूचना के आधिकार (आर.टी.आई.) ने आज की पत्रकारिता को बहुआयामी और अनंत बना दिया है। आज कोई भी जानकारी पलक झपकते उपलब्ध की और कराई जा सकती है। मीडिया आज काफी सशक्त, स्वतंत्र और प्रभावकारी हो गया है।आज के युग में पत्रकारिता के भी अनेक माध्यम हो गये हैं; जैसे - अखबार, पत्रिकायें, रेडियो, दूरदर्शन, वेब-पत्रकारिता और सोशल मीडिया आदि।



बदलते वक्त के साथ बाजारवाद और पत्रकारिता के अंतर्संबंधों ने पत्रकारिता की विषय-वस्तु तथा प्रस्तुति शैली में व्यापक परिवर्तन किए है। पत्रकारिता की पहुँच और आभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का व्यापक इस्तेमाल आमतौर पर सामाजिक सरोकारों और भलाई से ही जुड़ा है, किंतु अब इसका दुरूपयोग भी होने लगा है। फेसबुक, व्हाट्सएप और ट्विटर जैसे सोशल नेटवर्क लोगों के लिए खबर का स्रोत बन गए हैं, लेकिन इनका कोई पत्रकारिता मानदंड नहीं है। इन कंपनियों द्वारा उपयोग किए जाने वाले अत्यधिक लक्षित एल्गोरिदम द्वारा गलत सूचना या समाचार के प्रसार को बहुत बढ़ाया गया है। वे उन सूचनाओं के साथ उपयोगकर्ताओं पर बमबारी करने की संभावना रखते हैं।
वे उन सूचनाओं के साथ उपयोगकर्ताओं पर बमबारी करने की संभावना रखते हैं जो कि एल्गोरिथ्म को क्या लगता है कि खोजकर्ता को क्या पता होना चाहिए, यह सुदृढ़ करने के लिए कार्य करता है। जैसा कि वे खुद को इंटरनेट से परिचित करते हैं, नए ऑनलाइन भारतीय एल्गोरिदम के शिकार होने के लिए बाध्य हैं जो सामाजिक नेटवर्क फर्मों का उपयोग करते हैं। नए ऑनलाइन भारतीय एल्गोरिदम के शिकार होने के लिए बाध्य हैं जो सामाजिक नेटवर्क फर्मों का उपयोग करते हैं।
 संचार क्रांति तथा सूचना के आधिकार के अलावा आर्थिक उदारीकरण ने पत्रकारिता के चेहरे को पूरी तरह बदलकर रख दिया है। विज्ञापनों से होने वाली अथाह कमाई ने पत्रकारिता को काफी हद तक व्यावसायिक बना दिया है। मीडिया का लक्ष्य आज आधिक से आधिक कमाई का हो चला है। मीडिया के इसी व्यावसायिक दृष्टिकोन का नतीजा है कि उसका ध्यान सामाजिक सरोकारों से कहीं भटक गया है। मुद्दों पर आधारित पत्रकारिता के बजाय आज इन्फोटेमेंट ही मीडिया की सुर्खियों में रहता है।
इंटरनेट की व्यापकता और उस तक सार्वजनिक पहुँच के कारण उसका दुष्प्रयोग भी होने लगा है। इंटरनेट के उपयोगकर्ता निजी भड़ास निकालने तथा आपत्तिजनक प्रलाप करने के लिए इस उपयोगी साधन का गलत इस्तेमाल करने लगे हैं। यही कारण है कि यदा-कदा मीडिया के इन बहुपयोगी साधनों पर अंकुश लगाने की बहस भी छिड़ जाती है। गनीमत है कि यह बहस सुझावों और शिकायतों तक ही सीमित रहती है। उस पर अमल की नौबत नहीं आने पाती। लोकतंत्र के हित में यही है कि जहाँ तक हो सके पत्रकारिता हो स्वतंत्र और निर्बाध रहने दिया जाए और पत्रकारिता का अपना हित इसमें है कि वह आभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उपयोग समाज और सामाजिक सरोकारों के प्रति अपने दायित्वों के ईमानदार निवर्हन के लिए करती रहे।
 हाल ही में उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने कहा कि मीडिया को अपनी जिम्मेदारी समझाते हुए मीडिया कर्मियों से आग्रह किया कि उन्हें पत्रकारिता के नियमों और सिद्धांतों का पालन करना चाहिए और फर्जी और गलत खबरों के प्रसार को रोकना चाहिए। साथ ही लोगों तक सही सटीक और सरल भाषा में खबरें पहुंचानी चाहिए। उन्होंने कहा कि हम इस समय बदलाव और सुधारों की दिशा में आगे बढ़ रहे है।  इन सुधारों को आगे ले जाने के लिए सटीक जानकारी और प्रक्रिया जरूरी है। वक्त के साथ विकास को बढ़ावा देने और समाज की बेहतरी के लिए बदलाव लाने वाले कारकों पर मीडिया को अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए और ऐसी खबरों को तव्वजो देनी चाहिए.
 वेंकैया नायडू ने तकनीक आधारित सोशल मीडिया दिग्गजों और राजस्व उत्पन्न करने के लिए संघर्ष कर रहे पारंपरिक मीडिया के बीच एक राजस्व साझाकरण मॉडल को कारगर बनाने के लिए प्रभावी दिशानिर्देशों और कानूनों की आवश्यकता को रेखांकित किया। हालांकि पारंपरिक प्रिंट मीडिया ईमानदारी से ऑनलाइन होकर तकनीकी व्यवधान को अपना रहा है, यह एक व्यवहार्य राजस्व मॉडल के साथ आने के लिए संघर्ष कर रहा है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि कुछ देश प्रिंट मीडिया के लिए सोशल मीडिया दिग्गजों द्वारा राजस्व साझाकरण सुनिश्चित करने के लिए उपाय कर रहे हैं । नायडू ने जोर देकर कहा कि हमें इस समस्या पर भी गंभीरता से विचार करने और प्रभावी दिशानिर्देशों और कानूनों के साथ सहमति बनाने की जरूरत है ताकि प्रिंट मीडिया को प्रौद्योगिकी दिग्गजों के बड़े राजस्व से अपना हिस्सा मिल सके।
 सच में फ़ेक न्यूज़ मुक्त भाषण देश के नागरिकों की पसंद को प्रभावित करता है? मुख्य रूप से मीडिया कवरेज को एक संतुलित और तटस्थ दृष्टिकोण पर प्रहार करना पड़ता है। मगर फेक न्यूज असत्य सूचना है जिसे समाचार के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। इसका उद्देश्य अक्सर किसी व्यक्ति या संस्था की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाना या विज्ञापन राजस्व के माध्यम से पैसा कमाना होता है। थोड़ा प्रिंट को छोड़कर  डिजिटल मीडिया या सोशल मीडिया में नकली समाचारों का प्रचलन बढ़ गया है। भारत में, नकली समाचारों का प्रसार ज्यादातर राजनीतिक और धार्मिक मामलों के संबंध में हुआ है।हालांकि, कोविद -19 महामारी से संबंधित गलत सूचना भी व्यापक रूप से प्रसारित की गई थी। देश में सोशल मीडिया के माध्यम से फैलने वाली नकली खबरें एक गंभीर समस्या बन गई हैं।
हालांकि सरकार द्वारा सोशल मीडिया की अफवाहों को फैलने से रोकने के लिए इंटरनेट शटडाउन का उपयोग अक्सर किया जाता है। सरकार जनता को नकली समाचारों के बारे में अधिक जागरूक बनाने के लिए अधिक सार्वजनिक-शिक्षा पहल करने की योजना भी बना रही है। फैक्ट-चेकिंग ने फर्जी खबरों का मुकाबला करने के लिए भारत में तथ्य-जांच वेबसाइटों के निर्माण को बढ़ावा दिया है। लेकिन समाज के इस चौथे स्तम्भ की भी समझना चाहिए कि सामाजिक सरोकारों तथा सार्वजनिक हित से जुड़कर ही पत्रकारिता सार्थक बनती है। सामाजिक सरोकारों को व्यवस्था की दहलीज तक पहुँचाने और प्रशासन की जनहितकारी नीतियों तथा योजनाओं  को समाज के सबसे निचले तबके तक ले जाने के दायित्व का निर्वाह ही सार्थक पत्रकारिता है।
पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा पाया (स्तम्भ) है। कोई भी लोकतंत्र तभी सशक्त है जब पत्रकारिता सामाजिक सरोकारों के प्रति अपनी सार्थक भूमिका निभाती रहे। सार्थक पत्रकारिता का उद्देश्य ही यह होना चाहिए कि वह प्रशासन और समाज के बीच एक महत्त्वपूर्ण कड़ी की भूमिका अपनाये। अगर किसी भी मीडिया संस्थान की पहली खबर से अगर लोगों के चेहरे पर मुस्कान न आये तो वह कैसी पत्रकारिता ? ख़बरों के पीछे दौड़ती पत्रकारिता को भी थोड़े समय रेड लाइट की जरूरत है ताकि वो सुकून से आगे बढ़ सके और लोगों को सही रास्ता दिखा सके।
✍ - डॉo सत्यवान सौरभ,
रिसर्च स्कॉलर,कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,
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बुधवार, 13 मई 2020

महिलाओं और बच्चों पर तालाबंदी का प्रभाव

महिलाओं और बच्चों पर तालाबंदी का प्रभाव
------------------------------सत्यवान सौरभ,  

कोरोना महामारी संकट दुनिया भर की महिलाओं और बच्चों पर संभावित दूरगामी, दीर्घकालिक नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है। ये विशेष रूप से बच्चों के लिए विनाशकारी होने की संभावना रखता है, भले ही उनमें अन्य  समूहों की तुलना में कम गंभीर लक्षण और मृत्यु दर हों। आज 1.5 बिलियन से अधिक छात्र स्कूल से बाहर हैं। व्यापक नौकरी और आय में कमी और परिवारों में आर्थिक असुरक्षा से बाल श्रम, यौन शोषण और बाल विवाह की दर में वृद्धि होने की संभावना है। परिवारों में तनाव हैं, विशेष रूप से  तालाबंदी के कारण घरेलू हिंसा की घटनाओं में वृद्धि के मामले बढ़  रहे हैं।


अनुमानित 42-66 मिलियन बच्चे इस वर्ष संकट के परिणामस्वरूप अत्यधिक गरीबी में गिर सकते हैं, 2019 में पहले से ही दुनिया के 386 मिलियन  बच्चे अत्यधिक गरीबी से जूझ रहे हैं। 188 देशों ने 1.5 अरब से अधिक बच्चों और युवाओं को प्रभावित करते हुए देशव्यापी स्कूल बंद कर दिए हैं। आज की युवा पीढ़ी के लिए, और उनकी मानव पूंजी के विकास के लिए सीखने में संभावित नुकसान, भविष्य के लिए कठिन राह हैं। दो-तिहाई से अधिक देशों ने एक राष्ट्रीय दूरी सीखने का मंच पेश किया है, लेकिन कम आय वाले देशों में यह हिस्सा केवल 30 प्रतिशत है। इस संकट से पहले, दुनिया के लगभग एक तिहाई युवा पहले ही डिजिटल रूप से बाहर कर दिए गए थे और महामारी संकट ने अब पारम्परिक तौर से भी बाहर कर दिया।  

वैश्विक आर्थिक मंदी के परिणामस्वरूप परिवारों द्वारा अनुभव की गई आर्थिक कठिनाई 2020 में हजारों बच्चों की अतिरिक्त मौत का कारण बन सकती है, जो एक ही वर्ष के भीतर शिशु मृत्यु दर को कम करने में पिछले 2 से 3 वर्षों की प्रगति को उलट देती है। और यह चिंताजनक आंकड़ा संकट के कारण बाधित सेवाओं को भी ध्यान में नहीं रखता, यह केवल अर्थव्यवस्थाओं और मृत्यु दर के बीच के वर्तमान संबंध को दर्शाता है,  कुपोषण बढ़ने की आशंका 143 देशों के 368.5 मिलियन बच्चों में है, जो सामान्य रूप से दैनिक पोषण के एक विश्वसनीय स्रोत के लिए स्कूल भोजन पर भरोसा करते हैं, अब उन्हें अन्य स्रोतों को देखना होगा। बाल मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण के लिए जोखिम भी काफी हैं। शरणार्थी और आंतरिक रूप से विस्थापित बच्चों  में विशेष रूप से असुरक्षित होने  का गंभीर खतरा हैं।

लॉकडाउन और आश्रय के उपाय बच्चों की हिंसा और दुर्व्यवहार के गवाह होने के जोखिम के साथ आते हैं। इस संघर्ष में  शरणार्थी  बस्तियों जैसी विषम और भीड़ वाली परिस्थितियों में रहने वाले बच्चों  को भी काफी जोखिम है। दूरस्थ शिक्षा के लिए ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म पर बच्चों की निर्भरता ने अनुचित सामग्री और ऑनलाइन शिकारियों के संपर्क में आने के जोखिम को भी बढ़ा दिया है, गत रोज पहले चाइल्डलाइन इंडिया का यह खुलासा बेहद चिंताजनक है कि देश भर में लागू 21 दिन के लॉकडाउन के दौरान बच्चों के खिलाफ उत्पीड़न और हिंसा के मामलों में वृद्धि हुई है।

चाइल्डलाइन इंडिया की मानें तो विगत 11 दिनों के लॉकडाउन के दरम्यान उसकी हेल्पलाइन पर बच्चों के उत्पीड़न से संबंधित 92 हजार से अधिक शिकायतें प्राप्त हुई हैं।
उसके आंकड़ों के मुताबिक विगत 11 दिनों के दरम्यान पूरे देश से तकरीबन 3.07 लाख शिकायतें मिली जिनमें से 30 प्रतिशत बच्चों के खिलाफ उत्पीड़न व हिंसा को लेकर है। गौरतलब है कि ये आंकड़े जिलों की बाल संरक्षण इकाईयों की कार्यशाला के दौरान साझा किए गए हैं। दूसरी ओर राष्ट्रीय महिला आयोग द्वारा भी कहा गया है कि लॉकडाउन के दौरान घरेलू हिंसा को लेकर 24 मार्च से लेकर एक अप्रैल के बीच 257 शिकायतें मिली हैं। इन दोनों संस्थाओं के आंकड़ों से स्पष्ट है कि संकट की इस संकट की घड़ी में भी महिलाओं और बच्चों पर होने वाले अत्याचारों में कमी नहीं आयी हैं

ऐसी महामारी  के प्रकोप से आये लॉक डाउन से  लड़कियों और युवा महिलाओं के कर्तव्यों में वृद्धि हुई है, जो बुजुर्ग और बीमार परिवार के सदस्यों की देखभाल करती हैं, साथ ही साथ उन भाई-बहनों के लिए भी जो स्कूल से बाहर हैं, बुरे दिन शुरू हो गए है, वो क्या करें असमंजस में है। लड़कियों और  विशेष रूप से हाशिए के समुदायों विकलांग लोगों के लिए, विशेष रूप से इसके प्रभाव घातक है।  लड़कियों और महिलाओं को घर में हिंसा के खतरे बढ़ रहे हैं क्योंकि कोरोना सुरक्षा नियम उन्हें आवश्यक  सुरक्षा सेवाओं और सामाजिक नेटवर्क से दूर कर रहे हैं।

इस प्रकोप के कारण परिवारों पर आर्थिक तनाव बच्चों, और विशेष रूप से लड़कियों के शोषण, बाल श्रम और लिंग आधारित हिंसा के अधिक जोखिम में बढ़ोतरी हुई है,
 राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग भी स्वीकार चुका है कि उसके पास बाल श्रम के हजारों मामले दर्ज हैं। आंकड़े बताते हैं  कि भारत में  14 साल से कम उम्र के सबसे ज्यादा बाल श्रमिकों वाला देश बन चुका है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के मुताबिक दुनिया भर में तकरीबन बीस करोड़ से अधिक बच्चे जोखिम भरे कार्य करते हैं और उनमें सर्वाधिक संख्या भारतीय बच्चों की ही है। जब लॉकडाउन में बच्चों का शोषण थम नहीं रहा है तो आम दिनों में उनके साथ क्या होता होगा इसे आसानी से समझा जा सकता है।  

वैश्विक लॉकडाउन  लड़कियों की स्वायत्तता को बंद कर देते हैं, उन व्यवहारों और प्रथाओं को सुदृढ़ करते हैं जो लड़कियों को द्वितीय श्रेणी का मानते हैं और उन्हें वापस पकड़ते हैं। ऐसे समय लिंग आधारित हिंसा से सभी बच्चों, और लड़कियों और महिलाओं की कठोर सुरक्षा  को सभी नीतियों, सूचना, मार्गदर्शन में  प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
अतीत की महामारियों से होने वाले साक्ष्य इंगित करते हैं कि स्वास्थ्य संबंधी संसाधनों को अक्सर नियमित स्वास्थ्य सेवाओं से हटा दिया जाता है। यह आगे कई लड़कियों और युवा महिलाओं की यौन और प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं के साथ-साथ मातृ, नव-जन्म और बाल स्वास्थ्य सेवाओं तक पहले से ही सीमित पहुंच को कम करता है। यौन और प्रजनन स्वास्थ्य सूचना सेवाओं तक पहुँचने में चुनौतियाँ - जिनमें गर्भनिरोधक, सुरक्षित गर्भपात और एचआईवी दवाएं शामिल हैं- लड़कियों और महिलाओं के स्वास्थ्य और जीवन के जोखिमों को बढ़ाएँगी।


प्रकोप के दौरान आर्थिक चुनौतियां युवा महिलाओं के कार्य और व्यावसायिक गतिविधियो के लिए एक गंभीर खतरा पैदा करती हैं और उनके  शोषण या दुरुपयोग के जोखिम को बढ़ाती हैं। गंभीर आर्थिक आघात का सामना करने वाली लड़कियों और युवा महिलाओं को अपने आर्थिक अस्तित्व के लिए उच्च जोखिम वाले काम करने की संभावना के रास्तें  खुल जातें  है। ऐसे समय  युवा महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण की रक्षा और उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी का हमें  समर्थन करना चाहिए।

यह एक अभूतपूर्व संकट है और यह बच्चों और महिलाओं के अधिकारों और सुरक्षा और विकास के लिए अभूतपूर्व जोखिम प्रस्तुत करता है। इन  जोखिमों को केवल अभूतपूर्व अंतरराष्ट्रीय एकजुटता के माध्यम से कम किया जा सकता है। हमें जरूरत है तीन मोर्चों-सूचना, एकजुटता और जिम्मेदारी पर मिलकर काम करने की है। यह न केवल इस महामारी को हराने का मौका है, बल्कि  ये भी देखना है कि हम किस तरह बच्चों का  पोषण करते हैं और युवा पीढ़ी और महिलाओं में निवेश करते हैं। लेकिन हमें अभी कार्य करना है, हमें निर्णायक रूप से, और बहुत बड़े स्तर पर कार्य करना है। यह एक क्रमिक मुद्दा नहीं है, यह दुनिया के बच्चों और महिलाओं  के साथ-साथ  दुनिया के भविष्य के लिए एक स्पष्ट आह्वान है।

अमरीका और चीन जैसी महाशक्तियों ने इस वायरस के सामने घुटने टेक दिए हैं। सभ्यताओं पर संकट खड़ा हो गया है। संस्कृतियों पर ग्रहण लग गया है। इंसानों में मानवीयता का संकट खड़ा हो गया है। समाज के एक वर्ग के सामने भुखमरी की स्थिति पैदा हो गई है। आनेवाला वक्त भयावहता की घंटी बजा रहा है लेकिन हम आंतरिक साहस को मजबूत कर इस लड़ाई को जीत सकते हैं। दुनिया में ऐसा कोई कार्य नहीं है जिसे इंसान सम्भव न बना पाए। 

---------सत्यवान सौरभ,   
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