जहर आज भी पी रहा, बनता जो सुकरात ! कौन कहे है सत्य के, बदल गए हालात !! ✍ - डॉo सत्यवान सौरभ,
सोमवार, 10 जनवरी 2011
Dr.satywan saurabh barwa: छंद दोहा
Dr.satywan saurabh barwa: छंद दोहा: "पाँवों तले ज़मीनप्रकाशन :शुक्रवार, 7 जनवरी 2011 डॉ. सत्यवान वर्मा सौरभ कांटों को अ..."
छंद दोहा
पाँवों तले ज़मीन
प्रकाशन :शुक्रवार, 7 जनवरी 2011
डॉ. सत्यवान वर्मा सौरभ
रहके कांटों बीच ही खिलते फूल अनेक।
आओ मिलकर सब बढ़े नए सत्र की ओर।
बार बार पुकार रही नयी सुहानी भोर।
बीते कल को भूल के चुग डाले सब फूल।
बोये हम नव भोर पे सुंदर सुरभित फूल।
तू भी पाएगा कभी फूलों की सौगात।
धुन अपनी मत छोडऩा सुधरेंगे हालात।
आओ कांटों में भरे फूलों का अहसास।
ताकि चंदन से महके धरती औ’ आकाश।
उठो चलो आगे बढ़ो भूलों दुख की बात।
आशाओं के रंग में रंग लो फिर जज्बात।
नये दौर में हम करे एक नया प्रयास।
शब्द जो ये क़लम लिखे बन जाए इतिहास।
बने विजेता वो सदा ऐसा मुझे यक़ीन।
आँखों आकाश हो पाँवों तले ज़मीन।
साथी कभी न छोडऩा नयी भोर की आस।
अंधकार को चीर के, आएगा प्रकाश।
डॉ. सत्यवान वर्मा सौरभ
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